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________________ के विषयों के जो सुख हैं, उन पर ही बलिदान हो जाता है, बार-बार उनकी तरफ ही जाता है। ___ भावार्थ-'योग' शब्द के कई अर्थ हैं-संयोग, मन-वचन-काय की प्रवृत्ति, योगशक्ति (आत्मप्रदेशों में हलन-चलन करने वाली), आत्मध्यान, समाधि आदि। यहाँ पर स्पष्ट रूप से मन-वचन-काय की प्रवृत्ति है जो शुभ, अशुभ उपयोग से वासित होती है। इनसे ही कर्म का आना होता है। एक प्रकार से कर्म के आने के ये द्वार हैं। इसलिए इनकी प्रवृत्ति विषम कही गई है। कभी कर्म एकदम बहुत आते हैं और कभी बहुत कम। आचार्य अमितगति ने 'आस्रवाधिकार' में इसी अर्थ में 'योग' शब्द का प्रयोग किया है। उनके ही शब्दों में शुभाशुभोपयोगेन वासिता योग-वृत्तयः। सामान्येन प्रजायन्ते दुरितास्रव-हेतवः ॥योगसारप्राभृत, 3, 1 अर्थात्-शुभ तथा अशुभ उपयोग के द्वारा वासना को प्राप्त मन, वचन, काय की प्रवृत्तियाँ शुभाशुभ कर्मों के आत्मा में आगमन की हेतु होती हैं। ____ आचार्य कुन्दकुन्द स्पष्ट रूप से उद्घोष करते हैं कि जो पराधीन बनाकर संसार में परिभ्रमण कराते हैं, वे सुशील नहीं हैं। उनके शब्दों में___“कह तं होदि सुसीलं जं संसारे पवेसेदि” अर्थात् जो संसार में प्रवेश कराता रहता है, वह सुशील कैसे हो सकता है? जब यह जीव पर-द्रव्य में राग से शुभ भाव को और द्वेष के कारण अशुभ भाव को करता है, तब अपने चारित्र से भ्रष्ट होने के कारण कर्म का आस्रव होता है। यद्यपि पुण्यकर्म के उदय में देवगति की प्राप्ति होती है। फिर, देवगति को प्राप्त देवेन्द्रों को बहुत सुख होता है, फिर भी वे दुःख भोगते हैं। क्योंकि देवेन्द्रों को इन्द्रिय-विषयों से उत्पन्न जो सुख होता है, वह दाह उत्पन्न करने वाली तृष्णा को देने वाला है, इसलिए उसे दुःख समझना चाहिए। जो अस्थिर है, पीड़ा देने वाला है, तृष्णा बढ़ाने वाला है, कर्मबन्ध का कारण है, पराधीन है, उस इन्द्रियजनित सुख को जिनवरों ने दुःख ही कहा है। वास्तव में देवगति में शारीरिक दुःख नहीं है, किन्तु मानसिक सन्ताप उस समय इतना अधिक होता है कि मृत्यु होने के छह माह पूर्व माला मुरझा जाती है और उनका जन्म कहाँ पर किस गति में होना है, यह पहले से ही उनको ज्ञात हो जाता है। उनके उस समय के दुःख की हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। 224 : पाहुडदोहा
SR No.090321
Book TitlePahud Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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