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________________ को करते हुए एक दिन ज्ञान हो जाएगा। लेकिन ऐसा समझना ठीक नहीं है। आत्मा की शुद्धि के लिए ज्ञानाराधना में बुद्धि को लगाने की प्रेरणा करते हुए आचार्य अमितगति कहते हैं-"धर्म से वासित हुआ जीव निश्चय से धर्म में प्रवर्तता है; अधर्म में नहीं। पाप से वासित हुआ जीव पाप में प्रवृत्त होता है; धर्म में नहीं। इसी प्रकार ज्ञान से वासित हुआ जीव ज्ञान में प्रवृत्त होता है; अज्ञान में कदाचित् नहीं। इसलिए आत्मा की शुद्धि की इच्छा रखने वालों को ज्ञान की उपासना, आराधना में बुद्धि लगाना चाहिए।"-योगसारप्राभृत, 6, 46-47 जिस तरह एक बार संशोधित होकर सोना निर्मल हो जाता है, फिर वह मलिनता को प्राप्त नहीं होता। इसी प्रकार एक बार निज शुद्धात्मस्वभाव के सन्मुख होकर आत्मध्यान की अग्नि में मोह, राग-द्वेष का मैल दूर कर दृष्टि की निर्मलता पूर्वक निर्मल ज्ञान प्राप्त कर लेता है, फिर वह शुभाशुभ भावों की मलिनता को प्राप्त नहीं होता। ऐसा निर्मल ज्ञानी मोह का क्षय कर चारों घातिया कर्मों का अभाव कर देता है और केवलज्ञान का धनी हो जाता है। (द्रष्टव्य है-योगसारप्राभृत, 6, 48) वास्तव में तो शुद्ध मार्ग यही है। लेकिन प्रायः संसारी जीव न तो पूरी तरह से 'कषायी जीवन में रहता है और न पूर्णता के लक्ष से वीतरागी जीवन' जीता है। इस प्रकार दोनों में से एक भी जीवन इसे रास नहीं आता है। तब फिर क्या करता है? क्षणभर के लिए ऐसा क्रोध करता है, जिसकी वासना असंख्यात जन्मों तक बनी रहती है और फिर, धर्म के नाम पर व्रत, उपवास आदि भी करता रहता है। यही नहीं, इसे ही वह धर्म समझता है। अतः लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती। जोइय विसमी जोयगइ मणु वारणह' ण जाइ। ___इंदियविसय जि सुक्खडा तित्थई बलि-बलि' जाइ ॥190॥ .' शब्दार्थ-जोइय-हे योगी!; विसमी-विषम; जोगगइ-योगगति, योगवृत्ति; मणु-मम; वारणह-रोका; ण जाइ-नहीं जाता है; इंदियविसय-इन्द्रियों के विषय; जि-ही; सुक्खडा-सुख है; तित्थइ-वहीं पर, उन पर; बलि-बलि-बलिदान; जाइ-जाता है, हो जाता है। ___ अर्थ-हे जोगी! योगवृत्ति विषम है। क्योंकि मन रोका नहीं जाता है। इन्द्रियों 1. अ, ब, स वारणह; ब वारणहं; 2. अ तित्थव; क तित्यु जि; द, ब, स तित्थइ; 3. अ, क . वलि वलि; द विलि विलि; ब, स बलि बलि। पाहुडद्रोहा : 223
SR No.090321
Book TitlePahud Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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