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आचार्य जयसेन (1292-1323 ई.) ने भी उक्त गाथा की 'तात्पर्य-वृत्ति' टीका में इस दोहे को उद्धृत किया है। अतः यह निश्चित है कि मुनि रामसिंह की अधिकतम समय-सीमा नवम शताब्दी है। डॉ. आदि. नेमि. उपाध्ये ने उनका युग छठी शताब्दी से बारहवीं शताब्दी के मध्य माना है। क्योंकि ‘पाहुडदोहा' के कतिपय दोहे टीकाकार श्रुतसागर सूरि, ब्रह्मदेवसूरि, आचार्य जयसेन की टीकाओं में तथा. हेमचन्द्रसूरि के प्राकृत व्याकरण में उद्धृत हैं। यह एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है कि दो दोहे समान रूप से 'सावयधम्मदोहा' और 'पाहुडदोहा' में उपलब्ध होते हैं। इसमें तो कोई सन्देह नहीं है कि मुनि रामसिंह ने भाव रूप में, प्रभाव रूप में तथा छाया रूप में आ. पूज्यपाद की रचनाओं से तथा ‘परमात्मप्रकाश' से भाव ग्रहण किए थे; लेकिन यह भी सम्भव है कि ऐसे दोहे मौखिक रूप से प्रचलित रहे हों। मूल परम्परा में आम्नाय से कुछ गाथाएँ तीर्थंकर महावीर के समय से मौखिक प्रचलित रही हैं। हो सकता है कि ‘पाहुडदोहा' की रचना में उन मूल गाथाओं का भावानुवाद रहा हो। फिर, प्रतिलिपिकारों की स्मृति ने समान भाव वाले दोहों में प्रतिलिपि करते समय रूप-रचना में किंचित् समानता या रचनागत परिवर्तन जाने-अनजाने कर दिया हो। अतः यह स्पष्ट है कि वे सातवीं शताब्दी के पश्चात् तथा दसवीं शताब्दी के पूर्व हुए थे।
- इस प्रकार मुनि रामसिंह के समय की निम्नतम सीमा सातवीं शताब्दी तथा अधिकतम सीमा नौवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध है। मेरे अपने विचार में उनको नौवीं शताब्दी का मान लेना चाहिए। क्योंकि दसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में होने वाले आचार्य अमृतचन्द्र अपनी टीकाओं में जब उनके उद्धरण देते हैं, तो उससे स्पष्ट है कि साहित्य-जगत् में उनकी रचना प्रसिद्धि प्राप्त कर चुकी थी। अतः जन्म के 30-40 वर्षों के पश्चात् ही यह स्थिति बन सकती है। फिर, परम्परा के अनुसार भी 'परमात्मप्रकाश' तथा 'पाहुडदोहा' दोनों प्राचीन रचनाएँ हैं जो वर्षों से साहित्यिक जगत् में ख्यातिप्राप्त तथा समाज में प्रचलित रही हैं। डॉ. जैन के अनुसार 'पाहुडदोहा' सन् 933 और.1100 ई. के मध्य रचा गया है। अतः आचार्य हेमचन्द्र एवं आ. जयसेन ने भी इसके उद्धरण अपनी टीकाओं में उद्धृत किए हैं। ब्रह्मदेवसूरि ने भी 'परमात्मप्रकाश' की टीका में 'पाहुडदोहा' के 19 और 84 संख्यक दो दोहे पृ. 204 और 263 पर उद्धृत किए हैं। अतः यह सुनिश्चित है कि मुनि रामसिंह नौवीं शताब्दी के सन्त कवि हैं।
सन्त काव्य-धारा
भारत की विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध साहित्य के अनुशीलन से यह निश्चित हो जाता है कि इस देश का अधिकतम साहित्य सन्त कवियों या भक्त कवियों द्वारा 1. डॉ. आ.ने. उपाध्ये : परमात्मप्रकाश की प्रस्तावना, पृ. 70 2. डॉ. हीरालाल जैन : पाहुड-दोहा की प्रस्तावना, पृ. 33 18 : पाहुडदोहा