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________________ फेंकना है, वहाँ हिंसा है। किसी भी क्षेत्र में ऐसे परिणाम तथा प्रवृत्तिमूलक कार्य करना उचित नहीं हैं। पत्तिय तोडि म जोइया फलहिं जि हत्थु म वाहि। जसु कारणि तोडेहि तुहुँ' सो सिउ एत्यु चडाहि ॥1610 शब्दार्थ-पत्तिय-पत्तों (को); तोडि-तोड़ो; म-मत; जोइया-हे योगी!; फलहिं-फलों को; जि-भी; हत्थु-हाथ; म-मत; वाहि-लगाओ; जसु-जिस; कारणि-कारण से; तोडेहि-तोड़ते हो; तुहं-तुम; सो-वह; सिउ-शिव (परमात्मा); एत्थु-यहाँ (शरीर में) (है); चडाहि-चढ़ाओ। अर्थ-हे जोगी! पत्ते मत तोड़ो और फलों को भी हाथ मत लगाओ। जिस कारण से तुम उनको तोड़ते हो (भगवान् शिव को चढ़ाने के लिए) सो वह शिव यहाँ (घट में विराजमान है) है। अतः यहीं चढ़ा दे। भावार्थ-साधु महाव्रत के धारक होते हैं। उनके जीवन में अहिंसा महाव्रत होता है, जिसमें त्रस और स्थावर सभी प्रकार के जीवों की हिंसा का त्याग होता है। जब पाक्षिक श्रावक पर्व के दिनों में शाक-पत्ते, फूल व फल आदि को नहीं छू सकता है, तब भोजन में कैसे खा सकता है? इसलिए जिनेन्द्र भगवान् का उपदेश है कि मुनि को पत्ती नहीं तोड़नी चाहिए, फलों को हाथ नहीं लगाना चाहिए। मिट्टी और पानी भी किसी के दिए ग्रहण नहीं करना चाहिए। क्योंकि वे सभी प्रकार की हिंसा के त्यागी होते हैं। वे द्रव्य से पूजा नहीं करते हैं। उनके लिए भावपूजा करना ही आवश्यक है। अतः वे किसी भी प्रकार की हिंसा नहीं करते। संयमी साधु तथा प्रतिमा पूज्य है। जो परम इष्ट हैं, वे पूज्य हैं। वास्तव में पाँच परमेष्ठी (अर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु) ही पूज्य हैं। इसलिए उनकी पूजा की जाती है। इनके अलावा अन्य देवी-देवता कुदेव या अदेव हैं जिससे उनकी (क्षेत्रपाल, पद्मावती, मणिभद्र आदि) पूजा नहीं करनी चाहिए। 'कसायपाहुड' में कहा गया है-“एक्कस्सेव जिणस्स वंदणा कायव्वा" त्ति (1/1, 1/87) अर्हन्तादि के गुणों का चिन्तन करना भावपूजा है। भावपूजा में मन, वचन, काय सब ओर से सिमटकर परमात्मा के चरणों में एकाग्र हो जाते हैं। परमात्मा स्वानुभवगम्य है। इसलिए उसकी उपासना में लीन होना ही भावपूजा है। भावपूजा 1. अ, क, द, स तोडि; व छोडि; 2. अहि; क, द, ब, स म; 3. अ तोडेसि; क तोडेसि; द, ब, स तोडेहि; 4. अ, ब, स तुहु; क, द तुहूं; 5. अ वि वाहि; क, स चडाहि; द, व चडावि। 190 : पाहुडदोहा
SR No.090321
Book TitlePahud Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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