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________________ करता हुआ विषय-रस के स्वादी का प्रतीक है। अतः दोहे में भावानुभूति व्यंजक है। इसमें उत्तम अभिव्यंजना है। अतः उत्तम काव्य की प्रतीक है। शब्द-सौष्ठव तथा व्यंग्यार्थ भलीभाँति लक्षित होता है। मुंडु' मुंडाइवि सिक्ख धरि धम्महं वद्धी आस। णवरि' कुडुंबउ मेलियउ छुडु मिल्लिया परास ॥154॥ शब्दार्थ-मुंडु-मूंड़ मुंडाइवि-मुँडाकर; सिक्ख धरि-शिक्षा धारण करो; धम्महं-धर्म की; वद्धी-बढ़ी है; आस-आशा; णवरि-केवल; कुडुंबउ-कुटुम्ब (को); मेलियउ-छोड़ा (है); छुड्-यदि; मिल्लिया-छोड़ दी गई है; परास-पराई आशा; ____ अर्थ-जिन्होंने मूंड मुँडाकर संयम की शिक्षा धारण कर धर्म की आशा बढ़ाई है, उन्होंने केवल कुटुम्ब छोड़ा है; पराई आशा नहीं छोड़ी है।। भावार्थ-केवल वेश धारण करने से, संयम की शिक्षा-दीक्षा लेने मात्र से कोई साधु, मुनि या श्रमण नहीं हो जाता। सबसे महत्त्वपूर्ण है-राग-द्वेष छोड़ना। यदि पराई आशा छोड़ी होती, तो शिष्यों का कुटुम्ब नहीं बढ़ाते, समाज का सहारा नहीं लेते, समाज,की बढ़वारी तथा नामवरी के लिए रात-दिन आकुल-व्याकुल नहीं रहते। क्योंकि संयम तथा सामायिक चारित्र की दीक्षा ग्रहण करने वाला आत्माधीन व्यापार करता है, संसार के कामों में नहीं लगता है। इस शिक्षा का पालन तभी हो सकता हैं, जब पराई आशा, परावलम्बन न हो। परावलम्बी सदा दुखी रहता है। अतः 'सिर मुँडाने का अर्थ' राग-द्वेष तथा इन्द्रियों के विषयों की अभिलाषा का त्याग तथा तन एवं मन दोनों से नग्न, सहज स्वाभाविक होना है। वास्तव में नग्नता तो साधुता की प्रतीक है। जब तक मन में कोई विकार है, तब तक नग्न होने पर भी नग्नता नहीं है। नग्नत्व तो आदर्श है। अतः उसे उत्तम व ऊँची दृष्टि से देखना चाहिए। क्योंकि गृहस्थ के लिए साधु आदर्श है। वास्तविक गुरु निर्ग्रन्थ, दिगम्बर (जिनकल्पी श्रमण) साधु होते हैं। अतः उनका पद व चर्या महान् है। महान् महन्त होने पर ही होता है। ऊँचा पद लेने पर मर्यादा या चर्यानुरूप कार्य न हो तो वह महान् कैसे हो सकता है? यथार्थ में जिनकल्पी श्रमण, निर्ग्रन्थ 1. अ, क, द, स मुंडु ब मुडु; 2. अ मुंडावि; क, द, स मुंडाइवि; ब मुडाइवि; 3. अ, क, द, स सिक्ख; ब दिक्खा; 4. अ, क, द, स णवरि; ब णवर : 5. अ,क, स मिल्लिया; द, ब मिलिया हु परस्स। पाहुडदोहा : 183
SR No.090321
Book TitlePahud Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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