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________________ अर्थ - दुष्टों के साथ संगति करने से भले लोगों के भी गुण नष्ट हो जाते हैं। अग्नि का साथ करने से लोहा भी अग्नि के संग घनों से पीटा जाता है। भावार्थ-वर्तमान काल में सत्संगति का सुलभ होना धर्म-मार्ग में लगने का सबसे सरल उपाय है। आचार्य शुभचन्द्र का कथन है महापुरुषों का संग करना कल्पवृक्ष के समान समस्त प्रकार के मनोवांछित फल को देने में समर्थ है, अतः सत्पुरुषों की संगति अवश्य करनी चाहिए। (ज्ञानार्णव, 15, 36) यदि कोई शक्ति-सम्पन्न मनुष्य है, लेकिन उसे सत्पुरुषों का परिमण्डल, वातावरण नहीं मिलता है, तो वह सन्मार्ग से भटक जाता है। इसी प्रकार खोटी संगति से दुष्परिणाम प्राप्त होते हैं । जिस प्रकार लोहे की संगति में रहने वाली अग्नि लोहे के साथ पिटती है, वैसे ही रागादि भावों के संयोग में रहने पर जीव दुर्गति को प्राप्त होता है। मुनिश्री योगीन्दुदेव भी यही कहते हैं परद्रव्य का प्रसंग महान् दुःखरूप है। विवेकी जीवों के भी सत्य, शीलादि गुण मिथ्यादृष्टि, अविवेकी जीवों की संगति से नष्ट हो जाते हैं; जैसे अग्नि लोहे के संग में पीटी-कूटी जाती है । यद्यपि घन आग को नहीं कूट सकता है, किन्तु लोहे की संगति से अग्नि कुट पिट जाती है। इसी तरह दोषों की संगति से गुण भी मलिन हो जाते हैं। यह समझ कर आकुलता रहित सुख के घातक जो देखे, सुने, अनुभव किए गए भोगों की वांछा रूप निदान बन्ध आदि खोटे परिणाम रूपी दुष्टों की संगति नहीं करना अथवा अनेक दोषों से सहित रागी - द्वेषी जीवों की भी संगति कभी नहीं करना चाहिए, यह तात्पर्य है । (परमात्मप्रकाश, 2, 110 ) कहा भी है- “हे जिनदेव ! संसार रूपी ताप से संतप्त मैं जब तक दयारूप अमृत की संगति से शीतलता पाकर आपके दोनों चरण-कमलों को हृदय में धारण करता हूँ, तब तक ही सुखी हूँ । ” (पद्मनन्दिपंच. करुणाष्टक, श्लोक 7 ) हुयवहि णी ण संकया' धवलत्तणु संखस्स | फिट्टीसइ' मा भंति करि छुडु मिलिया हु परस्स * ॥ 150 ॥ - शब्दार्थ - हुयवहि- अग्नि में; णीइ - लाई गई ण संकया नहीं शंका; धवलत्तणु - धवलत्व, सफेदी ; संखस्स-शंख की फिट्टीसइ - नष्ट कर दी जाएगी (ऐसी); मा-मत; भति-भ्रान्ति; करि-करो; छुडु - यदि; मिलिया - मिल गया; हु-ही; परस्स - पर से । 1. अ, क हुयवहि; द हुइवहि; न हुयवह; स हुइवह; 2. अ, स संकया; क, व सक्किया; द सक्कियउ; 3. अ, क, द, स फिट्टीसइ ब पीट्टीसइ 4. अ, द, ब, स मिलिया हु परस्स । पाहुदोहा : 179
SR No.090321
Book TitlePahud Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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