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तोडिवि सयल' वियप्पडा अप्पहं मणु वि धरेहि। सोक्खु णिरंतरु तहिं लहहि लहु संसारु तरेहि ॥134॥
शब्दार्थ-तोडिवि-तोड़कर, मिटाकर; सयल-सम्पूर्ण; वियप्पडाविकल्प; अप्पहं-अपने में, आत्मा में; मणु-मन; वि-भी; धरेहि-धारण करो; सोक्खु-सुख; णिरंतरु-निरन्तर; तहिं-वहाँ; लहहि-प्राप्त करो; लहु-शीघ्र; संसारु-संसार; तरेहि-पार करो, तरो।
अर्थ-समस्त विकल्पों को मिटा कर अपने (स्वभाव में) में मन धारण करो। वहाँ पर तुम को निरन्तर सुख मिलेगा और तुम शीघ्र ही संसार के पार हो जाओगे। .
भावार्थ-जैसे अनेक बिच्छू एक साथ डंक मारकर प्राणियों को पीड़ा देते हैं, वैसे विकल्प प्राणी को पीड़ित करते हैं। वास्तव में विकल्प कल्पना मात्र हैं। जहाँ कल्पना है, वहाँ सुख-दुःख है। लेकिन कल्पना का सुख वास्तविक नहीं होता। इसलिए जब तक विकल्प विद्यमान रहते हैं, तब तक सुख नहीं होता।.. (तत्त्वज्ञानतरंगिणी, अ. 16, श्लोक 10)
जो विकल्प को कल्पना विशेष समझता है, वह उससे दुखी नहीं होता। कारण है कि बाहरी दुःख बुद्धिमान पण्डित के मन में कष्ट उत्पन्न नहीं करता, किन्तु मूर्ख को वह सताता है। पवन के वेग से रुई उड़ जाती है, किन्तु सुमेरु पर्वत का शिखर कभी नहीं उड़ता है। (कुलधराचार्यः सार समुच्चय, 306) .
भेद करना भी विकल्प है। भेद सदा दो के बीच होता है। अतः जब तक दो का लक्ष रहता है, तब तक विकल्प है। विकल्प के मूल में राग का योग अवश्य रहता है। यदि शुद्धनय से देखा जाए तो वस्तु अभेद है। अभेद एक द्रव्य को देखा जाए, तो शुद्ध चैतन्य मात्र भाव में द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव का कुछ भी भेद नहीं दिखता। जो योगी कल्पना के भय से निर्विकल्प ध्यान नहीं हो सकता है, इस भय से श्रुतज्ञान की भावना का आलम्बन नहीं करता है, वह अवश्य अपने आत्मा के विषय में मोहित हो जाता है और अनेक बाह्य चिन्ताओं को धारण करता है। (तत्त्वानुशासन, 145-146)
निश्चय से वीतराग निर्विकल्प स्वसंवेदन परिणाम रूप जो निज भावों का अभयदान है, वही स्वदया है। स्वदया से मोक्ष और परदया से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। (परमात्मप्रकाश, अ.2, दो. 127) आत्मा का स्वभाव वीतराग, निर्विकल्प है। किन्तु स्वभाव इसे भासित नहीं होता। अर्थ का भाव भासित हुए बिना वचन का
1. अ सयडु; क, द, ब, स सयल; 2. अ विअप्पडा; क, द, ब, स वियप्पडा; 3. अ सोखु; द, ब, स सोक्खु, क सुक्खु; 4. अ तहि; क, द, स तहिं; व तह; 5. अ लहहिं; क, द, स लहहि; व लहवि; 6. अ तरेवि; क, द, ब स तरेहि।
162 : पाहुडदोहा