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________________ अन्धकार में दीपक प्रकाश करता है, लेकिन कोई सामने देखकर न चले, तो गड्ढे में या ढालू भूमि पर गिर जाता है, उसके गिरने में दीपक का दोष नहीं है, उसी प्रकार आप अपने को नहीं जाने, नहीं पहचानें तो शास्त्र का कोई दोष नहीं है । कहा भी है पुस्तकैर्यत्परिज्ञानं परद्रव्यस्य मे भवेत् । तद्धेयं किं न यानि तानि तत्त्वावलम्बिनः ॥ - तत्त्वज्ञानतरंगिणी 36.15, 13 अर्थात् मैंने अब तत्त्व का अवलम्बन ले लिया है, मुझे अपने और पराये का सम्यग्ज्ञान हो चुका है, इसलिए शास्त्रों की सहायता से होने वाला पर द्रव्यों का ज्ञान भी हेय है। और उन पर द्रव्यों का ग्रहण तो अवश्य ही त्याग देना चाहिए। उनकी ओर झाँकना भी मेरे लिए योग्य नहीं है। इससे स्पष्ट है कि जो शास्त्र प्रथम वस्तु को जानने में सहायक है, वही. वस्तु-ज्ञान होने पर हैय हो जाता है। आचार्य कुन्दकुन्द का कथन है सत्यं गाणं ण हवदि जम्हा सत्थं ण याणदे किंचि । तम्हा अण्णं णाणं अण्णं सत्यं जिणा बेंति ॥ समयसार, गा. 380 अर्थात् - शास्त्र ज्ञान नहीं है, क्योंकि शास्त्र कुछ जानता नहीं है । इसलिए ज्ञान अन्य है, शास्त्र अन्य है - ऐसा जिनदेव कहते हैं । वास्तव में अक्षर, वर्ण, शब्दादि भी ज्ञान नहीं हैं, क्योंकि वे कुछ जानते नहीं हैं । छहदंसणगंथिं' बहुल अवरुप्परु' गज्जंति । जं कारणु तं एक्कु' पर विवरेरा' जाणंति ॥12॥ शब्दार्थ–छहदंसणगंथिं-छह दर्शनों (के) ग्रन्थों में; बहुत - अधिकतर; अवरुप्परु - एक दूसरे पर गज्जंति - गरजते हैं; कारणु-कारण; तं—उसे; एक्कु – एक (मात्र); विवरेरा - विपरीत; जाणंति - जानते हैं । (इसका ) जं- जो; पर–अन्य (को); 1. अ छहदंसणग्रंथि; क, द, स छहदंसाणगंथिं; ब छहदंसणगंथ; 2. अ, क, द, स अवरुप्परु; ब अवरोप्परु; 3. अ कारण; क, स कारणु; द कारणि; ब कारणं; 4. अ, ब एक्क; क, द, स इक्कु; 5. अ, क, द, स विवरेरा । 152 : हु
SR No.090321
Book TitlePahud Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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