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________________ अर्थ-हे जीव! ऐसा मत जानो कि ये विषय मेरे हो जाएंगे। किंपाक फल के समान (जो देखने में बहुत सुन्दर होते हैं, पर खाने पर मरण होता है) ये तुझे दुःख ही देंगे। भावार्थ-स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र ये पाँच इन्द्रियाँ हैं। इनके विषय क्रम से स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण और शब्द हैं। ये पाँचों विषय चेतना रहित जड़ हैं। चेतन की जाति से इनकी जाति भिन्न है। अतः चेतन इनका स्वामी कैसे हो सकता है? जैसे इन्द्रायण के सुन्दर फल को देखकर उसके सुखदायक होने का भ्रम उत्पन्न होता है, वैसे ही पाँचों इन्द्रियों के विषयों में सुखदायक होने का भ्रम ही होता है। अन्त में फल देते समय ये दुःखदायक ही अनुभव में सिद्ध होते हैं। . आचार्य अमितगति स्पष्ट शब्दों में कहते हैं। उनके ही शब्दों में यत्सुखं सुरराजानां जायते विषयोद्भवम् । ददानं दाहिका तृष्णां दुःखं तदवबुध्यताम् ॥ योगसार, 3, 34 अर्थात्-इन्द्रियों के विषयों से उत्पन्न हुआ जो सुख देवेन्द्रों को प्राप्त होता है, वह भी दाह को उत्पन्न करने वाला तथा तृष्णा को देनेवाला है, इसलिए उसे दुःख ही समझना चाहिए। वास्तव में संसार का सम्पूर्ण सुख दुःखमय है। आचार्य अमितगति का कथन है कि इन्द्रियों से उत्पन्न होनेवाला सुख दुःख क्यों है? इसमें ऐसी क्या बात है? कहते हैं कि प्रथम इन्द्रिय-सुख लगातार बना नहीं रहता। यह क्षण भर में नष्ट हो जाता है। दूसरे यह पीड़ादायक है। अतः जो अस्थिर है, पीडाकारक है, तृष्णावर्द्धक है, कर्मबन्धका कारण है, पराधीन है, उस इन्द्रियजन्य सुख को जिनदेव ने दुःख ही कहा है। (योगसार, 3, 35) प्रथम जिससे सुख का आभास होता है, वही बाद में दुःखदायक प्रतीत होने लगता है। इससे पता चलता है कि जिसे हम सुखदायक समझते थे, वास्तव में वह सुखदायक नहीं हैं और न दुःखदायक। परिस्थिति विशेष में हमें उनमें जैसा आभास होता है, वैसा ही हम उनको समझने लगते हैं जो भ्रम मात्र है। विसया सेवहि जीव तुहुं दुक्खह' साहक' जेण। तेण णिरारिउ पज्जलइ हुयवहु जेम घिएण' 1210 शब्दार्थ-विसया-विषयों (को); सेवहि-सेवन करते हो; जीव! तुहुं-तुम; दुक्खहं-दुःख के; साहक-साधक (है); जेण-जिससे; तेण-उससे; 1. अ, ब दुक्खह; क, द, स दुक्खह; 2. अ, ब साहिक; क साहेक; द साहिक; स साहक; 3. अ, द, क एण; व तेण; स जेण; 4. अ, ब घएण; क, द, स घिएण। 146 : पाहुडदोहा
SR No.090321
Book TitlePahud Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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