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________________ श्रेष्ठ कहा गया है। अध्यात्म में आत्मानुभव की मुख्यता होने के कारण कर्मकाण्ड का निषेध किया जाता है। मुनि रामसिंह ने स्पष्ट रूप से ‘पाहुडदोहा' में कहा है जं लिहिउ ण पुच्छिउ कहण जाइ, कहियउ कासु वि णउ चित्ति ठाइ। अह गुरुउवएसें चित्ति ठाइ, तं तेम धरंतहं कहि मि ठाइ ॥167॥ अर्थात्-शुद्धात्मा स्वानुभूतिगम्य है। जो किसी प्रकार लिखा, पूछा तथा कहा नहीं जाता और किसी प्रकार उसे कहा भी जाए, तो वह किसी के चित्त में नहीं ठहरता। यदि गुरु उपदेश देते हैं, तो ही चित्त में ठहरता है। फिर, धारण करने वाले.. कहीं भी स्थित हों। तीर्थ बाहर में नहीं, अन्तरंग में है। यदि आत्मशुद्धि प्राप्त नहीं है, तो बाहर के तीर्थों में परिभ्रमण से क्या लाभ है? मुनि रामसिंह के शब्दों में तित्थई तित्थ भमंतयहं किं णेहा फल हूव। बाहिरु सुद्धउ पाणियह अभितरु किम हूव ॥163॥ अर्थात् एक तीर्थ से दूसरे तीर्थ में भ्रमण करते हुए स्नेह करने का फल क्या .. हुआ? बाहर से तो पानी शुद्ध कर लिया, लेकिन भीतर में क्या हुआ? यथार्थ में सन्तों की सुदीर्घ परम्परा में मुनि रामसिंह अपभ्रंश के कवियों में अपना एक विशिष्ट स्थान रखते हैं जो क्रान्तिद्रष्टा कवि की भाँति ओजस्वी स्वरों में जहाँ धर्म के नाम पर प्रचलित पाखण्ड तथा बाह्य आडम्बर का विरोध करते हैं, वहीं दूसरी ओर आध्यात्मिक गूढ रहस्यों की मधुर अभिव्यंजना करते हैं। यद्यपि उनके पूर्व मुनिश्री योगीन्दुदेव 'परमात्मप्रकाश' और 'योगसार' काव्य रचनाओं के द्वारा अध्यात्म का रहस्य प्रकट कर चुके थे, किन्तु ‘पाहुडदोहा' का वैशिष्ट्य रहस्यवादो अभिव्यंजना में निहित है। आध्यात्मिक साधना और अखण्ड आत्मानुभूति की शुद्ध परम्परा का अभिव्यक्तिकरण इसकी विशेषताएँ हैं। ___भारतीय दर्शन में प्रारम्भ से ही आत्मा और जीवन के सम्बन्ध में जिज्ञासा, ब्रह्म का रहस्यपूर्ण स्वरूप तथा अखण्ड आत्मानुभव की एक लम्बी पुरा-ऐतिहासिक परम्परा रही है। जैनदर्शन इसी परम्परा का सकारात्मक स्वरूप है, जिसके मूल आगम ग्रन्थ अपने विशुद्ध स्वरूप को लिए हुए आज भी ‘पाहुड' रूप रचनाओं में उपलब्ध हैं। अतः योगीन्दु की भाँति रामसिंह ने भी 'शुद्धात्मा' को 'ब्रह्म' माना है। क्रान्ति के स्वर 'क्रान्ति' दो प्रकार की है-आध्यात्मिक और सामाजिक। आध्यात्मिक क्रान्ति को ‘उत्क्रान्ति' कहते हैं। रूढ़ि, जड़ता एवं भौतिकता का पल्ला छोड़कर ही कोई 12 : पाहुडदोहा
SR No.090321
Book TitlePahud Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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