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________________ ज्ञानपरिणति का विलास करते हैं। यदि परिणति-नारी का विलास न हो तो ज्ञान जानन...जानन रूप लक्षण को यथार्थ में नहीं रख सकता। उदाहरण के लिए, अभव्य जीव के ज्ञान तो है, लेकिन ज्ञान-परिणति नहीं है, इसलिए उसका ज्ञान यथार्थ नहीं है। यही नहीं, ज्ञान के साथ सदा ज्ञानपरिणति नारी है। जब तक ज्ञान का परिणति-नारी से समागम नहीं होता है, तब तक ज्ञान की अनन्त शक्ति दबी हुई रहती है। उसकी अनन्त शक्ति को खोलने वाली परिणति-नारी है; जिस प्रकार विशल्या ने लक्ष्मण की शक्ति खोली थी। इस प्रकार ज्ञान अपनी ज्ञान-परिणति नारी के विलास से अपने प्रभुत्व का स्वामी हुआ। अध्यात्म : ज्ञानप्रधान भारतीय आध्यात्मिक रचनाओं में, सन्तों की बानियों तथा काव्यात्मक पदावलियों में उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक ज्ञानप्रधान वर्णन उपलब्ध होता है; कर्मकाण्डमूलक नहीं। यथार्थ में आध्यात्मिक या आत्मज्ञान की मुख्यता बताने के लिए कर्मकाण्ड का निषेध किया गया है जो विरोध के लिए विरोध न होकर यथार्थता को लिए हुए है। कर्नाटक के बारहवीं शताब्दी के सिद्धकवि अल्लम इसी प्रकार के क्रान्तिकारी कवि थे। उनका कथन है देह ही है देवालय मूर्ति है प्राण जब शरण को अन्य मन्दिर की क्या जरूरत। ___ (शून्य सम्पादन, भा.1, तृतीयोपदेश, वचन 82) इन कवियों की यह विशेषता है कि आध्यात्मिक होने के कारण ये रहस्यवादी भी थे। अपभ्रंश के रहस्यवादी कवियों की भाँति अल्लम आत्मज्ञान के लिए अन्तःकरण की शुद्धता आवश्यक मानते थे। कबीर में भी यही विशेषता है। इसी प्रकार ‘पाहुडदोहा' की भाँति अल्लम और कबीर आदि में भावनात्मक और साधनात्मक रहस्यवाद लक्षित होता है। भारत के प्राचीन आध्यात्मिक ग्रन्थों में कर्मकाण्ड की अपेक्षा आत्मानुभव को - 1. जैन साहित्य में वर्णित राम-कथा के अनुसार रावण युद्धस्थल में अमोघविजया नामक महाशक्ति से लक्ष्मण को मूर्च्छित कर देता है। विद्याधर उनके शरीर से शक्ति को बाहर निकालने का उपाय करते हैं। विशल्या को वहाँ बुलाते हैं। उसके आते ही वह दिव्यशक्ति बाहर निकल जाती 2. सं. डॉ. एम.वी. कोट्रशेट्टी, अनु. डॉ. गायत्री वर्मा : शून्य सम्पादन, भा. 1, कर्नाटक विश्वविद्यालय, धारवाड़, 1978 प्रस्तावना : 11
SR No.090321
Book TitlePahud Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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