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________________ क्रोध से सबसे बड़ी हानि यह है कि क्रोध के आते ही विवेक गायब हो जाता है। क्रोध में जलते हुए प्राणी को यह भान नहीं रहता है कि कर्त्तव्य क्या और क्या नहीं है। क्रोध से स्वास्थ्य, शरीर, मन और भावों सभी को हानि पहुँचती है। जब क्रोध का आवेश आने पर महान् पुरुष भी दुर्दर्शनीय अवस्था को प्राप्त हो जाते हैं, तो फिर साधारण जनों का क्या कहना है? जब तक मनुष्य काम-क्रोधादिक के वश में है, तब तक उसे परमात्मा का दर्शन नहीं होता। परमात्मा का दर्शन हुए बिना अपना स्वरूप भासित नहीं होता और अपना स्वरूप भासे बिना सुख तथा शान्ति की प्राप्ति नहीं होती। क्रोध का अर्थ है-अपने से द्रोह, अरुचि, अवमानना करना। जिसे आत्मा नहीं रुचती है, वह क्रोध करता है। क्योंकि उसकी दृष्टि पर-निमित्त पर होती है और वह उसे प्रतिकूल मानता है। तभी तो कहा गया है अनुकूल कहें प्रतिकूल कहें, यह झूठी मन की वृत्ति है। प्रतिकूल. संयोगों में क्रोधित, होकर संसार बढ़ाया है। हत्थ अहुट्ठ जु' देवलि वालह णाहि पवेसु। संतु णिरंजणु तहि वसइ णिम्मलु होइ गवेसु ॥95॥ शब्दार्थ-हत्थ अहुट्ठ-साढ़ तीन हाथ (के); जु-जो; देवलि-देवालय में; वालहं-बाल (मात्र का); णाहि-नहीं; पवेसु-प्रवेश; संतु णिरंजणुसन्त निरंजन; तहिं-वहीं; वसइ-रहता है; णिम्मलु-निर्मल, होइ-हो कर, गवेसु-खोज करो। __ अर्थ-साढ़े तीन हाथ का जो देवालय है, उसके भीतर एक बाल का भी प्रवेश नहीं है, उसी में सन्त निरंजन बसता है। तुम निर्मल होकर उसकी खोज करो। भावार्थ-एक भी परिग्रह का त्याग न होने पर चित्त निर्मल नहीं होता। आचार्य अमितगति का कथन है एकत्राप्यपरित्यक्ते चित्तशुद्धिर्न विद्यते। ____ चित्तशुद्धिं बिना साधोः कुतस्त्या कर्म-विच्युतिः ॥ योगसार, 8,35 · अर्थात्-चौबीस प्रकार के परिग्रह में से यदि एक भी परिग्रह नहीं छूटता है, तो चित्त शुद्ध नहीं होता। चित्तशुद्धि के बिना किसी भी साधु की कर्मों से मुक्ति नहीं होती। भूमि, भवन, धन-धान्यादि के भेद से बाहरी, परिग्रह दश प्रकार का और 1. अ, द, ब अहुट्ठ जु; क अहुट्ठह; स अहुट्ठह; 2. अ, ब वालह; क, स वालहं; द वालहि; 3. अ, क, ब, स संतु; द सत्तु; 4. अ, द तहिं; क तह; स तह; ब तहि। पाहुडदोहा : 119
SR No.090321
Book TitlePahud Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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