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________________ ज्ञान हो या न हो-यह नियम नहीं है कि ज्ञान होगा ही। लेकिन जहाँ आत्मा है, वहाँ नियम से ज्ञान है। इसलिए शुद्ध आत्मा को ज्ञान कहा गया है। आत्मा स्वयं ज्ञान है। ज्ञान जीव का स्वभाव है। आत्मा अपने ज्ञान स्वभाव से अभिन्न है। आचार्य अमृतचन्द्र के शब्दों में आत्मा ज्ञानं स्वयं ज्ञानं ज्ञानादन्यत्करोति किम्। परभावस्य कर्तात्मा मोहोऽयं व्यवहारिणाम् ॥समयसारकलश, 62 अर्थात्-आत्मा ज्ञानस्वरूप है, स्वयं ज्ञान ही है। वह ज्ञान के अतिरिक्त अन्य क्या करे? आत्मा राग-द्वेष-मोह भावों का करने वाला है ; ऐसा मानना व्यवहारी जीवों का अज्ञान है। एक द्रव्यस्वभावी होने से ज्ञान ज्ञान के स्वभाव से सदा ज्ञान रूप होता है, इसलिए ज्ञान ही मोक्ष का कारण है। (समयसार कलश, श्लोक 106) इससे यह सिद्ध है कि कर्तव्य (कम) मोक्ष का कारण नहीं है। कुछ लोग परमार्थ मोक्ष के हेतु से भिन्न व्रत, तप इत्यादि शुभ कर्म रूप को मोक्ष का कारण मानते हैं; उस सबका यहाँ निषेध किया गया है। (समयसार, गा. 156, आत्मख्याति टीका) क्योंकि मोक्षमार्ग बाहर में नहीं, श्रद्धा, ज्ञान, चारित्र, तप की आराधना में है जो निज आत्मस्वभाव की लीनता से प्रारम्भ होता है। परमार्थ से एक द्रव्यस्वभाव ही मोक्ष का कारण है। ताम कुतित्थई परिभमई धुत्तिम ताम करंति । गुरुहु' पसाएं जाम णवि देहह देउ मुणंति ॥81॥ शब्दार्थ-ताम-तब तक; कुतित्थई-कुतीर्थों (में); परिभमई-परिभ्रमण करते हैं; धुत्तिम-धूर्तता; ताम-तब तक; करंति-करते हैं; गुरुहु-गुरुके पसाएं-प्रसाद से; जाम-जब तक; णवि-नहीं; देहहं-देह के; देउ-देव (को नहीं); मुणंति-जानते हैं। __अर्थ-लोग तभी तक कुतीर्थों में भ्रमण करते हैं तथा धूर्तता करते हैं, जब तक वे गुरु के प्रसाद से देहस्थित देव को नहीं पहचानते। भावार्थ-कई लोग तो कुल-परम्परा से, राजा की पद्धति से या लोक में देखा-देखी गुरु, तीर्थ, धर्म आदि मानते हैं। आचार्य कुन्दकुन्ददेव का कथन है कि 1. अ, ब कुतित्थह; क कुतित्थहं; द, स कुतित्थई; 2. अ, ब परिभमइ, क, द, स परिभमई; 3. अ, क करंति; द, ब, स करेइ; 4. अ, ब, गुरह; क गुरुहुं; द गुरहं; स गुरुहु; 5. अ, क, द, स जाम; ब ताम; 6. अ, ब, स देहह; क, द देहहं; 7. अ, क मुणंति; द मुणंतु; व मुणेवि। पाहुडदोहा : 105
SR No.090321
Book TitlePahud Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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