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नदि पवापिंशतिः
मुनियोंकी एला जिनागम गौर जिनकी पूजाके नतीनिय मात्माके सम्मानमें न कहनेकी समानरूपद
प्रब्हिा सीका वरूप
अंगाराविधान काब्य और उनकी रचना करनेवाले रमवयधारा मुनिका तिरस्कार करनेवाले बरकत
कवियोंकी मिन्दा पात्र होते है
बीशरीरका स्वरूप
1-14 मुनियोंकी स्तुति मसम्भव है
| सीकी मयंकरता
1-10 व्यवहार सम्यग्दर्शनाविका सरूप उन दोनों
| मोहकी महिमाको विकास उसके लापका विना मुक्तिकी नसम्भावना .२- उपदेश
1९-२५ सम्पग्दर्शन के बिना हान पौर चरित्र मिया कडे
वीवराण व सर्वश नाका ही पचन प्रमाण हो
सकता है, इसके वचनमें सन्देश प्रवा हमनवप्रशंसा
मूखता है
१५-२५ उक्त सम्यग्दर्शनादि बास्मसाप है
ममेक मेद-ममेदरूप समस्त मुतमें नाल्माको ही गुदमयका भात्मवत भसम है
पादेय कहा गया है निय सम्पग्दर्शनाविका वल्प
| परोक्ष पदार्षके विषयमें जिनवचनको प्रमाण उत्तम झामाका स्वरूप
मानना चाहिये
१२८ कोष मुनिधर्मका विधायक है
शानकी महिमा कोपके कारणों के उपस्थित होनेपर मुविजन
मर्थपरिज्ञानकी कारण जिनवाणी चा विचार करते है
भारमाका ही नाम धर्म है मादेष धर्मका स्वरूप
माध्यमिकमावि मान्य वादियों द्वारा कपित मानव धर्मका रूप
८९-९०
नामाके स्वरूपका निर्देश करके उसके सस्य का स्वरूप व उसकी उपादेयता ५१-५५ यथार्य स्वरुपका दिग्दर्शन शौच धर्मका स्वरूप र बाम शौरकी
मामाके अनिवकी सिदि
१५-१९ अकिचिकरवा
बन्द पादियों के द्वारा परिवरिपत मामाके संघमा सरूप व उसकी उपादेयता
व्यापकत्व माविका निराकरण सपका सस्पर उसकी उपादेवता ९४-1.0 नात्माका कप और मोक्तत्व स्याग व आपिका सम्प
। उस मारमाके स्वरूपको नव-प्रमाणाविक नामयले सुनियोंकी बुरुमा
प्रहण करना चाहिये मालमभावमें शरीर व शाब माविको
रागशेषके परित्यागका उपदेश
11०-४५ परिरहनहीं कहा जा सकता
परमारुमा इसी पारीके भीतर स्थित है मामाचर्या स्वरूप प उसके धारकोंकी मशंसा 10-५ पर पदार्यों में इटानिष्ट कल्पनाका निषेध दे इस धर्म मोक्ष-महकपर चरने के लिये सैलीके तत्ववित् कौन है पादखानोंके समान है
सुख-दुस्खका अभिषेक खास्यका सारूप
भास्माने परसे मित्र समझना, पही समस्या चिपका स्वरूप
१०८ उपदेशका रहस्य है मुक्तिका स्वरूप | योगीका रूप
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