________________
सामाजिक व्यवस्था : ७५
***
है— 'अंसुयाणि कणगतानि, कणगख सियानि, कणगविलाणि, कणगविचित्ताणि अर्थात् अंशुक में तारबीन का काम होता था, अलंकारों में जरदोजी (स्वचितानि ) का काम तथा उसमें सोने के तार से चित्र विचित्र नक्काशियाँ बनी हुई थीं। उपर्युक्त वर्णन से पता चलता है कि अंशुक किमान अथवा पोत जैसा कोई कपड़ा था । आचारांग में भी इसका उल्लेख है ४२ नायाघम्य कहाओ में राजकुमार गौतम को अंशुक की धोती और दुपट्टा जो रंगीन, महीन और मुलायम था और जिनके किनारों पर सुनहरा काम था, पहिने बतलाया गया है। बाण ने अंशुक वस्त्र को अत्यन्त ही शीना और स्वच्छ वस्त्र माना है । ४२७ पद्मचरित में उतरीय वस्त्र के प्रसङ्ग मे वस्त्र अर्थ का श्रोतन कराने के लिए अंशुक शब्द का प्रयोग हुआ है|४२८ यहाँ पर इसके ऊपर कसीदा के अनेक फूल बनाने (कृतपुष्पकम् ) का उल्लेख है ।
४२९
पट्टांशुक - सफेद और सदा रेशमको ट्र
४३०
जाता था।
कंचुक - पद्मचरित के द्वितीय पर्व में मगध देश की स्त्रियों को कंक (चोली ) पहने बतलाया गया है। गांधार कला में स्त्रियों साड़ी के ऊपर या नीचे कंतुक पहने दिखलाई गई हैं । ये कंचुक लम्बे और कसे हुए होते थे तथा उन पर सलवटें पड़ी रहती थीं । ४३१
दुकूल - पद्मचरित के सातवें पर्व में केकशी को शय्या का वर्णन करते हुए कहा गया है कि उसकी शय्या दुकूल पट से कोमल थी। आषारोग में दुकूल को गौड विषय विशिष्ट कार्पासिकं अर्थात् गौर देश (बंगाल) में उत्पन्न एक विशेष
के साथ तब तक ओखली में कूटते हैं जब तक उसके रेशे अलग नहीं हो जाते। बाद में वे रेशे काल लिए जाते हैं (निशीण ७ ५० ४६७ ॥ ४२५. आचारोग, ३, ५, १, ३ डॉ० मोतीचन्द्र
प्राचीन भारतीय वेशभूषा,
पु० १४८ ।
४२६. नाया धम्म कहाओ १, १३ प्राचीन भारतीय वेशभूषा पृ० १५९ । ४२७. सूक्ष्मविमलेन अंशुकेनाच्छादितशरीरा देवी सरस्वती ( ९ ) विषयन्तुमयेन अंशुकेन उन्नतस्तनमध्यमात्रिका ग्रन्थिः सावित्री (१०) वासुदेवशरण अग्रवाल : हर्षचरित एक सांस्कृतिक अध्ययन, १०७८ । ४२८. उत्तरीयं च विन्यस्तमंशुकं कृतपुष्पकम् ।। पद्म ३११९८ ।
४२९. वही, ३१९८ ।
४३०. प्राचीन भारतीय वेषभूषा, ५०९५ ।
४३१. वही, पृ० १०९, ११० ।