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सामाजिक व्यवस्था ५७
को प्राप्त कराई गई हैं (या कराया गया है), ऐसा जो मनुष्य निरूपण करता है वह अज्ञानमूलक है । २४
अपशकुनों की निवृत्ति के उपाय -- जिस प्रकार मानव प्रकृति मे शकुनों में विश्वास को जन्म दिया है उसी प्रकार उसने अपशकुनों की निवृत्ति के लिए उपायों की खोज की । पद्मचरित में भी इस प्रकृति के स्पष्ट दर्शन होते हैं । सीता द्वारा अपशकुन का फल जानने की चेष्टा करने पर कुछ देवियाँ कहती हैं कि अधिक तर्कवितर्क करने से क्या लाभ है ? शान्ति कर्म करना चाहिए । २४६ जिनेन्द्र भगवान् के अभिषेक, अत्युदार पूजन और किमिच्छुक दान के द्वारा अशुभ कर्म को दूर हटाना चाहिए।२० देवियों की मलाह पर सीता ऐसा ही करती है । २४८ कहीं-कहीं पर ऐसे भी उदाहरण आए हैं जहाँ इन अपशकुनों की उपेक्षा दिखलाई गई है । ५७ पर्न में सूरता के अतिगर्व से मूत्र तथा बड़ोबड़ी सेनाओं से उद्धत राक्षसों के समूह अशुभस्वप्नों के दृष्टिगत होते हुए भी युद्ध के लिए बराबर नगरी से बाहर निकलते दिखाये गये हैं । २४९ सप्तम पर्व में सुमाली अशुभ शकुनों को देखकर माली से युद्ध से वापिस चलने को कहता है तब माली उत्तर देता है कि शत्रु के वध का संकल्प कर तथा विजयी हाथी पर सवार हो जो पुरुषार्थ का धारी युद्ध के लिए चल पड़ा है वह वापिस कैसे लौट सकता है | १५०
आरोग्यशास्त्र - पद्मवरित में विकसित आरोग्य कला के दर्शन होते हैं । एक स्थान पर कहा गया है कि जब रोग उत्पन्न होता है तब उसका सुख से विनाश किया जाता है पर जब यह रोग जड़ मधिकर व्याप्त हो जाता है तब मरने के बाद ही उसका प्रतीकार हो सकता है । २५१ एक अन्य स्थान पर औषधि कड़वी होने पर भी उसे ग्रहण करने योग्य बतलाया गया | २५२ उस समय के होने वाले रोगों में से कुछ रोगों २५६ के नाम प्रसंगवश पद्मचरित में आये हैं । जैसे उरोधात ( जिसमें वक्ष:स्थल, पसली आदि में दर्द होने लगता है) महादाहज्वर ( जिसमें महादाह उत्पन्न होता है) लाल परिस्राव (जिसमें मुँह से लार बहने लगती है) सर्वशूल ( जिसमें सर्वाङ्ग में पीड़ा होती है ), अरुचि (जिसमें भोजनादि को रुचि नष्ट हो जाती है), छर्दि ( जिसमें वमन होने लगता
२४५. पद्म० ९६।१० ।
२४७. वही, ९६ १५ ।
२४९. वही, ५७ / ७१ । २५१. वही, १२ । १६१ । २५३. वहीं, ६४।१५
२४६. पद्म० ९६।१४ । २४८. वही, ९६।१६ ।
२५०. वही, ७५० । २५२. वही, ७३।४८ ।