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सामाजिक व्यवस्था : ५३ घोड़े का ग्रीवा को कंपाना तथा प्रखर शरद करते हुए होसना,१८९ हाथी का कठोर शब्द करते हुए पृथ्वी को ताड़ित करना ।१९० सूर्य के सम्मुख हुए कौए का अत्यन्त तीक्ष्ण शम्द करना तथा अपने झुण्ड को छोड़कर अलग बैठ जाना,१११ कोए के पंख हीले पलना तथा अत्यन्त व्याकुल दिखाई पड़ना,१२२ दाहिनी मोर कोए का कौव-काय करना,१९३ गाल का नीरस शब्द करना, १९४ कौए का सूखा काठ चोंच में दबाकर सूर्य की ओर देखते हुए क्रूर शब्द करना,१५ रोक्ष का महाभयंकर शब्द करना, १६ प्रयाण के रोकने में तत्पर होना, मण्डलाकार बांधका दक्षिा की कि , मी का पंखों द्वारा माद अन्धकार उत्पन्न करना,१५७ विकृत शब्द करना, शृगाली १५८ का दक्षिण दिशा में रोमांच बारण करते हुए भयंकर शब्द करना, गधे ११ का दाहिनी ओर मुख उठाकर आकाश को बड़ी तीषणता से मुखरित करना, खुर के अमभाग से पृथ्वी को खोदते हुए भयंकर शन्द करना, महानाग का मार्ग काट जाना, ऐसा लगने लगना जैसे लोग उससे कह रहे हों कि हा, ही, तुझे विकार है, कहाँ जा रहा है ?२०० पीछे की ओर छौंक होना १०१ आदि लक्षण अशुभ सूचक माने गये है, दक्षिण दिशा में माल का अत्यन्त भयंकर शब्द करना,२०२ आकाश में सूर्य को आपछादित करते हुए गोष का मेहराना२०५ ये अपशकुन मरण के सूचक है।
सामान्यतः काक की चेष्टाय अशुभ मानी जाती हैं किन्तु काक का किसी विशेष स्थिति में होना तथा मधुर शब्द करना कहीं-कहीं शुभ माना गया है। चन्द्रप्रम चरित महाकाव्य (तेरहवीं शती) में युवराज सहित राजा पृथ्वोपाल के साथ युद्ध के लिए जाते समय मार्ग में क्षीरी (खिरनी) के वृक्ष पर स्थित काक द्वारा मधुर शब्द करना शुभ२०४ किन्तु पडलीपाल के रणभूमि को जाते समय
१८९. प. ७२८१ ।
१९०. पम० ७२६८१ । १९१. वही, ७२०८१ ।
१९२, वही, ७२।८३ । १९३. वही, ७३५१९ ।
१९४, वही, ७२०८० । १९५. वही, ७४४ ।
१९६, वही, ५७०६९। ११७. वही, ५७७०।
१९८. वहीं, ७४५ । १९९. वही, ७८ ।
२००. वही, ७३।१८। २०१. वही, ७३।१९।
२०२. वहीं, ७४।१५ । २०३. वही, ७३।१५। २०४. वीरनन्दो : चन्द्रप्रभवरित १७१२८ ।