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पद्मचरित का सांस्कृतिक महत्त्व : २९७
पद्मचरित में विशेषकर आठवें बलभद्र राम और आठवें नारायण लक्ष्मण तथा प्रतिपक्षियों के जीवन तथा उनसे सम्बन्धित घटनाओं का वर्णन किया गया हैं। हरिवंश पुराण में नवें बलभद्र और नवें नारायण तथा उनके प्रतिपक्षियों से सम्बन्धित घटनाओं का वर्णन किया गया है ।
पद्मचरित में राम के पिता दशरथ का रावण के भय से राज्यभार मन्त्रियों को सौंपकर इधर-उधर परिभ्रमण, उनका अनेक राजाओं से युद्ध तथा केकया नामक कन्या की प्राप्ति का वर्णन है। हरिवंश पुराण में कृष्ण बलदेव के पिता वसुदेव अपने बड़े भाई समुद्रविजय द्वारा महल के बाहर न घूमने की पाबन्दी के कारण छल से नगर के बाहर निकलकर अनेक देशों में भ्रमण कर वीरोचित कार्य करते हुए अनेक सुन्दर राजकुमारियों के साथ विवाह करते हैं । हरिवंशपुराण के १९ से ३१ तक १३ सर्गों में वसुदेव की इसी प्रकार की चेष्टाओं तथा तत्सम्बन्धी अन्य कथाओं का उल्लेख किया गया है जबकि पद्मचरित में केवल २३वें और २४वें पर्व में ही राजा दशरथ की उपर्युक्त चेष्टाओं का वर्णन है । अन्त में जिस प्रकार दशरथ कैकयी के स्वयंवर के बाद घर पर आ जाते हैं उसी प्रकार वसुदेव भी रोहिणी के स्वयंवर के बाद घर पर आ जाते हैं। पद्मचरित के २६ वें पर्व में राजा जनक के नवजात शिशु भामण्डल को पूर्व भव के और के कारण महाकाल नाम का असुर हरकर ले जाता है बाद में दयार्द्र होकर उसे आकाश से नीचे गिरा देता है । हरिवंशपुराण के ४३ सर्ग में श्रीकृष्ण के पुत्र, प्रद्युम्न को पूर्वभव का वंरी धूमकेतु नाम का असुर हकर ले जाता है और खदिराटनी में यक्षशिला के नीचे दबा आता है । बाद में पुण्य योग से दोनों को विद्यावर राजा अपने यहाँ ले जाते हैं। पद्मवरित में मामuse अपनी बहिन सीता के चित्रपट को देख अज्ञानवश उसके प्रति आकर्षित हो जाता है। क्षन्त में इसी आकर्षण के कारण यथार्थ स्थिति जान वह अपने माता-पिता आदि से मिलता है । हरिवंश पुराण में कालसंबर की स्त्री कनकमाला, जिसने कि पुत्रवत् प्रद्युम्न का पालन किया था, पूर्वजन्म के मोहवश उसपर आसक्त हो जाती है। इसी आधार पर प्रद्युम्न यथार्थ का पता लगाकर अपने माता पिता आदि से मिलता है। ५२
पद्मचरित के १०९ वे पर्व में प्रद्युम्न तथा उसके भाई शास्त्र के पूर्वभवों का वर्णन है। हरिवंश पुराण के ४३ वें सर्ग में प्रद्युम्न तथा शाम्ब की कथा का निरूपण इसी प्रकार किया गया है।
पद्मचरित के अट्ठाईसवें पर्व में नारद सोता के महल में जाते हैं । सीता ५९. हरिवंश पुराण सर्ग ४७ ।
५८. पद्म० २८, २९, ३० ।