________________
२९६ : पद्मचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
गमवरित में क्षेत्र-माल निरूपण के पश्चात् भोगभूमि, चौदह कुलकर, अंतिम कुलकर नाभिराय तथा उनके यहाँ प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का जन्म, भगवान् के भग्त बाहुबली आदि पुत्रों का वर्णन, भरत की दिग्विजय, भगवान् को दीक्षा लेना तथा निर्वाण प्राप्त करना आदि का वर्णन संक्षिप्त रूप से किया गया है। हरिवंटा पुराण में क्षेत्र-काल निरूपण के पश्चात् भोपभूमि, चौवह कुलकर, अन्तिम कुलकर नाभिराय तथा उनके यहां प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव का जन्म, भगवान् के भरत बाहुबली आदि पुत्रों का वर्णन, भरत को दिग्विजय, भगवान का दीक्षा लेना तथा निर्वाण प्राप्त करना आदि का विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है । पप्रचरित के पञ्चम पर्व में चार महावंशों का वर्णन कर अजितनाथ भगवान् तथा मगर चक्रवती का वर्णन किया गया है। हरिवंश पुराण के अयोदश सर्ग में सूर्यवंश और चन्द्रवंश के अनेक राजाओं का समुल्लेख, अजितनाथ भगवान् सथा सगर चक्रवर्ती का वर्णन किया गया है।
पभचरित के इक्कीस पर्व में भगवान मुनिसुव्रतनाथ का वर्णन संक्षिप्त रूप से किया गया है। हरिवंश पुराण के पोडश सर्ग में भगवान् मुनिसुयतनाय का वर्णन विस्तृत रूप से किया गया है।
पषचरित के एकादपा पर्व में यज्ञ की उत्पत्ति का प्रारम्भिक इतिहास बतलाते हए अयोध्या के क्षीरकदम्बक गुरु, स्वस्तिमती नामक उनकी स्त्री, राजा वसु तथा नाग्द और पर्वत का अजयंष्टब्यं शब्द के अर्थ को लेकर विवाद, वसु द्वारा मिथ्या निर्णय तथा उसका पतन निरूपित किया गया है। हरिवंश पुराण के सत्रहवें सर्ग में भी राजा वसू. श्रीरकदंबक के पुत्र और नारद का 'अजैर्यष्टव्यं' वाक्य के अर्थ को लेकर विवाद, वसु द्वारा मिथ्या पक्ष का समर्थन, वसु का पतन और नरक गमन का निरूपण किया गया है ।
पद्म चरित के बाईस पर्व में नरमांसभक्षी सौदास की कथा कही गई है । हरिवंश पुराण के चौबीसवें सर्ग में भी मनुष्यभनी सौदास की कथा है, लेकिन इन दोनों ग्रन्थों को कथाओं में कुछ भेद है। पद्मचरित में सुदास को राजा नत्रुष५ मा पुत्र तथा हरिवंश पुराण में इसे काञ्चनपुर के राजा जितशत्रु का पुत्र कहा गया है । पचरित में अंत में वह किसी सा । से अनत का" घारी हो अंत में महावैराग्य से युक्त हो तपोवन को चला जाता है । हरिवंश पुराण में उसकी मृत्यु वसुदेव के हाथों से होती है। ५१. पद्म पर्व ३, ४ ।
५२. हरिवंश पुराण सर्ग ७-१३ ॥ ५३. पक्ष्म० २२।१३९ । ५४. हरिवंश पुराण २४५११-१३ । ५५. पद्म २२११४८ ।
५६. वही, २२॥१५२ । ५७. हरिवंश पुराण सर्ग २४ ।