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पनवरित का सांस्कृतिक महत्त्व : २९३ से युद्ध करते हैं तथा अलता म" से तुम करते हैं। बुद्ध अस्चित होने पर सिद्धार्थ लवण और अंकुश का परिचय देता है। इस पर राम अपने पुरों से मिलकर दोनों को अपने पास रखते हैं ।४२
रावण के चरित्र में अन्तर-रामभक्ति के पल्लवित होने के पश्चात् रावण के परिष चित्रण में अस्तर आ गया है और यह कहा गया है कि रावण ने मोक्ष प्राप्त करने के उद्देश्य से सीता का हरण किया था। राक्षस होने के कारण बह राम-भक्ति का अधिकारी महीं था, किन्तु वह सम के द्वारा मारे जाने पर ही परमपद प्राप्त कर सकता था। अर्वाचीन रामकथाओं के अनुसार रावण ने इसी उद्देश्य से सीता का अपहरण किया था। अध्यात्म रामायण में इसका स्पष्ट शम्मों में उल्लेख किया ममा है कि रावण ने सीता का माता के समान पालन किया था ।४३ उन रचनामों के शताब्दियों पूर्व ही विमलमूरि और रविण ने रावण का चरित्र ऊपर उठाने का प्रयास किया था। इन दोनों अन्यों के अनुसार रावण में केवल एक दुर्बलता है। यह सोता के प्रति आसक्ति है । वह एक भक्तिमय जैनधर्मावलम्बी है जो नलकूबर की पत्नी जपरम्भा का प्रेम प्रस्ताव अस्वीकार करता है और किसी केवला का उपदेश सुनकर यह धर्मप्रतिज्ञा करता है कि मैं विरक्त परनारों का स्पर्श नहीं करूंगा। अपने जीवन के अन्तिम दिनों में यह सीता का राम के प्रति प्रेम देखकर मीता हरण पर हार्दिक पश्चात्ताप करता है। ___ उपर्युक्त वर्णन से यह नहीं समझना चाहिए कि पद्मचरित में केवल समकथा ही कही गई है। रामकथा तो एक आधार है। उसके माध्यम से इसमें भगवान् महावीर, राजा श्रेणिक, कुलकर, ऋषभदेव, राजा श्रेयांस और सोम, भरत चक्रवती, बाहुबली, अजितनाथ भगवान्, सगर चक्रवर्ती, शवन दणि, सहस्रनयन तथा पूर्णधन, आयलि तथा चन्द्र, रम्भ, भीम, सुभीम, मेघवाहन, सगर के पुत्र, महारक्ष विद्याधर, राजा श्रीकण्ठ, विद्युत्केश, किष्क्रिम्ब और अन्नकरूढि, माली-सुमाली, राजा सहस्रार, इन्द्र विद्याधर, वैश्रवण, दशानन, भानुकर्ण, विभीषण, मन्दोदरी, सुरसुन्दर, इन्द्रजित, हरिषेण चक्रवर्ती, बालो, खरदुषण, विराधित, सुग्रीय, साहसगति विद्याधर, सहस्ररश्मि, राजा वसु, नारद-पर्वत, नारद,
४२. पन पर्व १०२, १०३ । ४३. सन्मति सन्देश, वर्ष १५, अंक ३, पृ० १२ । ४४. वही, पप० १२९७-१५२, १४६३७१, सन्मति सन्देश, पृ० १२ वर्ष १५
अंक ३ । ४५. पय० ७२।४९-६९, सन्मति सन्देश पृ० १२ वर्ष १५ अंक ३ ।