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________________ पनवरित का सांस्कृतिक महत्व : २९१ और मदना कुश कहे गए है। इसके अतिरिकह सम्म कारमा शिक्षा भो पद्मचरित में मिलती हैं जिनमें से अधिकांश विशेषतामों की घोर संकेत डॉ० रेवरेंड फादर कामिल गुरूके ने अपने अन्य रामकथा (उत्पत्ति और विकास) में परमचरिय के प्रसंग से कर दिया है। इस अन्य में परमचरिय और पप्र. चरित की जिन मान्यतामों में वैशिष्ट्य है, उन्हें भी कह दिया गया है, अतः उनको यहाँ दुहराना पिष्टपेषण ही होगा। जैन रामकथा ने ब्राह्मण रामकपाओं को व्यापक रूप से प्रमावित किया। उनमें से कतिपय प्रसंगों की ओर बल्क साहब ने संकेत किया है। ये प्रसंग निम्नलिखित है जो पमचरित में भी बाए है सीता स्वयंवर के अवसर पर अन्य राबाओं की उपस्थिति में राम द्वारा धनुर्भङ्ग ।३० कैकेयी का पश्चात्ताप ।" ___ लंका में विभीषण से हनुमान् फी भेंट-२ अर्वाधीन रामकथाओं में विभीषण को रागभक्त के रूप में चित्रित किया गया है। आनन्द रामायण में लिखा है कि रावण की लंका में सीता की खोज करते हुए हनुमान ने विभीषण को कीर्तन संलग्न पाया था। रामचरित मानस, गुजराती रामायणसार आदि रचनाओं में भी हनुमान् तथा विभीषण की भेंट का वर्णन किया गया है। वास्तव में जैन रामायणों में पहले-पहल इस भेंट का उल्लेख मिलता है। पउमरिम तथा पमचरित को अनुसार विभाषण ने लंका में हनुमान् का स्वागत किया था तथा सोता को लौटाने के लिए रावण से आग्रह करने की प्रतिमा की थी। लक्ष्मण द्वारा शूर्पणखा (चन्द्रनखा) के पुत्र का घ- वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड में जो शम्धूक वर्ष का वृत्तान्त मिलता है, इसके अनुसार नारद से यह जानकर कि शुद्ध की तपस्या के कारण किसी ब्राह्मण पुत्र की अकाल मृत्यु हई, राम पुरुपक पर चढ़कर शूद्र का पता लगाते है तथा उसका वध भी करते है ।" पडमचरिय (पद्मचरित में भी) इस कथा को एक दूसरा रूप दिया गया है-खरदूषण तथा चन्द्रनखा का पुत्र शम्बूक सूर्यहास नामक खड्ग प्राप्त करने के उद्देश्य से साधना करता है। १२ वर्ष की तपस्या के पश्चात् यह खड्ग प्रकट २८. पथ० १००।२१। २९. वही, रामकथा, पृ. ७३५ । ३०. वहीं, पर्व २८। ३१. वही, ३२१०४-११०। ३२. वही, ५३११-१२ । ३३. वही, ५३।१-१२, सन्मति सन्देश, पृ० ११ वर्ष १५ अंक ३ । ३४. वही, पर्व ४३। ३५. सन्मति सन्देश, पृ० १३ वर्ष १५ अंक ३ (मार्च १९७०)।
SR No.090316
Book TitlePadmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Culture
File Size6 MB
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