________________
२८० : पमापरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति कर्तमान् हैं । लोक में यह सुना जाता है कि वेद की उत्पत्ति ब्रह्मा तथा प्रजापति आदि पुरुषों से हुई है अतः इस प्रसिशि का दूर किया जाना शक्य नहीं है। पदि तुम्हारा यह विचार हो कि ब्रह्मा आदि वेद के कर्ता नहीं है किन्तु प्रवक्ता अर्थात् प्रवचन करने वाले हैं तो वे प्रवचनकर्ता आपके मत से रागद्वेषादि से युक्त ही ठहरेंगे ।१५ यदि सर्वज है तो वे अन्यथा उपदेश कैसे देंगे, अन्यथा व्याख्यान कैसे करेंगे, क्योंकि सर्वज्ञ होने से उनका मत प्रमाण है। इस प्रकार सर्वज्ञ की सिद्धि होती है।
वेद शास्त्र नहीं है-संवर्त द्वारा यज्ञ के विषय में शास्त्र प्रमाण देने पर भारद कहता है कि बेदी के मध्य में पशुओं का जो बघ होता है यह पाप का कारण नहीं है, यह कहना अयुक्त है उसका कारण सुनो । २५८ सर्वप्रथम तो वेद शास्त्र है यही बात अशिक्षा : क्योंवि. शा५ यह कहता है जो माता के समान समस्त संसार के लिए हित का उपवेषदे। जो कार्य निर्दोष होता है उसमें प्रायश्चित्त का निरूपण करना उचित नहीं है परन्तु इस याशिक हिंसा में प्रायश्चित्त कहा गया है इसलिए यह सपोष है। उस प्रायश्चित्त का कुछ वर्णन ४००
___जी सोमयज्ञ में सोम अर्थात् चम्नमा के प्रतीक रूप सोमलता से या करता है उसका तात्पर्य यह होता है कि वह देवों के वीर सोम राजा का हनन करता है, उसके इस यज्ञ को दक्षिणा एक सौ बार गौ है।४०१ (गवां शतं द्वादशं वा
३९४, पद्म ११।१९० ।
३९५, पद्म० ११११९१ । ३१६. वही, ११।१९२ ।
३९७. वही, ११५११३ ॥ ३९८. वही, ११।२०८।
३९९, बहो, १११२०१ । ४००, बहो, ११।२१० ।
४०१. वही, ११४२११ । सोमया-सोमरस की भाति देने से यह सोमयाग कहलाता है। सोमयाग ही
आर्यों का प्रसिद्ध याग है । पारसी लोगों में यह प्रचलित था। यह बहुत ही विस्तृत दीर्घकालीन तथा बहुसाधनध्यापी व्यापार है। इसके
प्रधानतः कालगणना की दृष्टि से सीन प्रकार है(१) एकाह-एक दिन में साध्य याम ।। (२) अहीन-दो दिन से लेकर १२ दिन तक चलने वाला याग । (३) सत्र-१३ दिनों से प्रारम्भ कर पूरे वर्ष तथा एक हजार वर्षों तक चलने
वाला याग 1 द्वादशाह दोनों प्रकार का होता है-अहीन तथा सत्र ! इसके अग्निष्टोम, अत्यग्निष्टोम, उक्थ्य, पोस्शी, वाजपेय, अतिरात्र, आप्तोर्याम इस प्रकार ७ भेद है। इनका विशेष विवरण आचार्य