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धर्म और दर्शन : २६५ संसारी जीवों का जन्म-संसारो जीवों का अम्म तीन प्रकार का होता है१. गर्भजन्म, २. उपपाद जन्म, ३. सम्मूच्छन जन्म |
गर्भजन्म-पोतज, अण्डज तथा जरायुज के गर्भजन्म होता है ।२७१
जरायुज-जाल के समान मांस और खून से व्याप्त एक प्रकार की थैली से लिपटे हुए जो जीव पैदा होते हैं अम्हें जरायुज कहते हैं। जैसे- गाय, भैंस, मनुष्य आदि ।२७२
अण्डज-जो जीव अपडे में उत्पन्न हों उन्हें अण्डज कहते हैं जैसे-धील, कबूतर मादि ।२५३
पोत--पैदा होते समय जिन जीयों पर किसी प्रकार का बावरण नहीं हो और जो पैदा होते ही चलने फिरने लग जावें उन्हें पोत कहते हैं जैसे—हरिण, सिंह भादि ।२७४
उपपाद जन्म-देवों और नारकियों के उपपाद जन्म होता है ।
सम्मर्छन जन्म-गर्भ और उपपाद जम्म बालों से बाकी बचे हुए जीवों के सम्मुर्छन जन्म होता है ।२७६
शरीर--औदारिक, वैक्रिमिक, माहारक, तैजस और कार्मण ये पांच शरीर हैं । २७ जो शीर्ण हो शरीर है। माप मदादि पदार्थ भी विवरणशील है परन्तु उनमें नाम कर्मोदय निमित्त नहीं है, अतः उन्हें शरीर नहीं कह सकते 1 जिस प्रकार गच्छतीति गौः यह विग्रह रूद्ध पान्दों में भी किया जाता है उसी तरह शरीर का भी विग्रह समझना चाहिए ।२४
औदारिक-उदार अर्थात् स्थूल प्रयोजन घाला या स्थूल जो शरीर वह औदारिक है । २७९
वेक्रियिक- अणिमा आदि आठ प्रकार के ऐश्वर्य के कारण अनेक प्रकार के छोटे बड़े रूप जिसका प्रयोजन है वह वैक्रियिक है ।२८० पधचरित में भी २७१, पद्मा १०५।१५० ।। २७२. मोक्षशास्त्र, पृ० ४५ (टीकाकार ५० पम्नालाल जी साहित्याचार्य) । २७३. वही, पृ० ४५ ।
२७४. वही, पृ. ४५ । २७५. पर० १०५।१५० 'देवनारकाणामुपपादः'-तत्त्वार्थमूत्र २०३४ 1 २७६. पन० १०५।१५१ 'शेषार्ण सम्मूर्छनम्'-तत्त्वार्थसूत्र २।३५ । २७७. वही, १०५।१५२ (पम०) । २७८. औदारिकर्व क्रियिकाहारकर्तजसकामणानि शरीरागि'-तत्त्वार्थसूत्र २२३६,
तत्त्वार्थवातिक, २१३६ की व्याश्या, कातिक १,२,३ । २७९. वही, वार्तिक ५ ।
२८०. वही, बार्तिक ६।