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२५६ : पप्रचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति तथा वलय के आकार है। सबके बीच में सम्बद्वीप है ।११ जम्बद्वीप मेरुपर्वत रूपी नाभि से सहित है, गोलाकार है तथा एक लाख योजन विस्तार वाला है, इसकी परिधि तिगुनी से कुछ अधिक कही गई है।५१२,
उस जम्बूद्वीप में पूर्व से पश्चिम तक लम्बे हिमवान्, महाहिमवान्, निषध, नील, रुकमी और शिखरी ये छह कुलाचल हैं। ये सभी समुद्र के जल से मिले है तथा इन्हीं के द्वारा जम्बुद्वीप सम्बन्धी क्षेत्रों का विभाग हुआ है । २१३ यह भरत क्षेत्र है इसके आगे हेमवत्, इसके आगे हरि, इसके मागे विदेह, इसके आगे रम्यक, इसके आगे हैरण्यवत और इसके आगे व्यहि रावत ये सात क्षेत्र जम्बूद्वीप में हैं। इसी जम्बद्वीप में गंगा आदि नदिया है। घातकीखंड तथा पुष्कराध में जम्बूद्वीप से दूनी-दूनी रचना है ।२१४ भरत और ऐरावत ये दोनों क्षेत्र वृद्धि और हानि से सहित हैं। अन्य क्षेत्रों की भूमियों व्यवस्थित है अर्थात् उनम कालचक्र २११. पूर्वाद द्विगुणविष्कम्भाः पर्वविक्षेपवर्तिनः ।
-वलयाकृत मोमध्ये जम्बू द्वीप : प्रकीर्तितः पद्म० १०५।१५५ । द्विििवष्कम्भाः पूर्व-पूर्व परिक्षेपिणो वलयाकृतयः । तत्वार्थसूत्र ३३८ । २१२. मेहनाभिरसौवृत्तौ लक्षयोजनमानमृत् । त्रिगुणं तत्परिक्षेपाधिकं परिकोतिसम् ।
-पद्० १०५।१५६ । तन्मध्ये मेरुनाभित्तो योजनशतसहस्पविष्कम्भो जम्बू द्वीपः ।
तत्मार्थसूत्र ३९ २१३. पूर्वापरायतास्तत्र विशेयाः कुलपर्वताः ।
हिमवांश्च महाजयो निषघो नील एव च ।। रुक्मी च शिखरी चेति समुद्रजलसंगताः । वास्यान्यभिविभक्कानि जम्बूदीपगतानि च । -पा० १०५.१५७-१५८ । 'तविभाजिनः पूर्वापरायता हिमवन्महाहिमवन्निषचनीलरुक्मिशिस्त्ररिणो
वर्षघर पर्वताः' तत्वार्थ मुष ३।११ । २१४. भरतास्यमिदं क्षेत्रं ततो हैमवतं हरिः ।
विदेही रम्यकाख्यं च हरण्यवतमेव च ऐरावतं च विजेयं गड़गाद्याश्चापि निम्नगाः । प्रोक्तं द्विधातिकोखण्डे पुष्करा च पूर्वकम्, पन० १०५।१५९-१६० । 'भरतहमवतहरिविवह रम्यकहरण्यवतैरावत वर्षाः क्षेत्राणि ।।
-तत्त्वार्थसूत्र ३1१० गङ्गासिंधुरोहिद्रोहितास्याहरिद्धारकान्तागीतागोतोदानारीनरकान्ता 'सुवणरूप्यकुलारकारक्तादाः सरितस्तन्मध्यगाः' तत्वार्थसूत्र, ३।२० द्वितिकीखण्टे ३।२३।.