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२४८ : पचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति उत्तम पण्य नहीं है । १३८ जो उत्तम वस्त्र का पारक है, जिसके शरीर से सुगन्धि निकल रही है, जिसका दर्शन सबको प्रिय लगता है, नगर की स्त्रियां जिसकी
सा कर रहा है, जो पन्चों को देखता हा चलता है, जिसने सब विकार छोड़ दिए हैं, जो उत्तम भावना से युक्त है और अछे कार्यों के करने में तत्पर है, ऐसा होता हुभा जो जिनेन्द्र देव की वन्दना के लिए जाता है उसे अनन्त पुण्य प्राप्त होता है । १३९ तीनों कालों और तीनों लोकों में व्रत, ज्ञान, तप और दान के द्वारा मनुष्य के जो पुण्य संचित होते हैं वे भावपूर्वक एक प्रतिमा के बनवाने से उत्पन्न हुए पुष्प को बराबरी नहीं कर सकते । १४० इत्यादि । १४°*
जिनेन्द्र पूजा की विधियाँ-पधचरित में जिनेन्द्र पूजा की निम्नलिखित विधियाँ उपलब्ध होती है
१. सुगन्धित जल से जिनेन्द्र भगवान का अभिषेक करना । २. दून की धारा से जिनेन्द्र भगवान् का अभिषेक करना । १४५ ३. दही के कलशों से जिनेन्द्र का अभिषेक करना ।१४१ ४. घी से जिनदेव का अभिषेक करना ।१४४ ५. भक्तिपूर्वक जिनमन्दिर में रक्षावलि आदि का उपहार चढ़ाना । १४५ ६. जिनमन्दिर में गीत, नृत्य, धादित्रों से महोत्सव करना ।१४३ " तीनों कालों में जिनेन्द्र देव की वन्दना करना । १४७ ८. परिग्रह की सीमा नियत कर जिनेन्द्र भगवान् की भर्चा करना । १४८ ९. रत्न तथा पुष्पों से पूजा करना । १४५ १२. भावरूपी फूलों से जिनेन्द्र पूजा करना । ५० ११. चन्दन तथा कालागुरु आदि से उत्पन्न घूप पढ़ाना । ५५ १२. शुभभाव से दीपदान करना ।१५२
१३८. पम- ३१७८-१८२ । १३९, पद्म १४॥२१९, २२० ।। १४०. वही, ३२।१७४ । १४०*. वही, १४॥२०९, २१०, ३४४-३४६, २१२-२१४ । १४१. वहीं, ३२।१६५ ।
१४६. वही, ३२११६६ । १४३, वही, ३२।१६७ ।।
१४४. वही, ३२११६८ । १४५. घही, ३२११७१ ।
१४६. नहीं, ३२।१७१ । १४७. वहीं, ३२२१५८ ।
१४८, वही, ३२।१५३ । १४९. बहो, ४५।१०१, ३२११५९ । १५०. वही, ३२।१६० । १५१. वही, ३२॥१६१ ।
१५२. वही, ३२।१६२ ।