________________
२४४ : पद्मचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति शरीर इन आठ पदार्थों का आश्रय करके जो गर्व करना है वह मद कहलाता है।१०७ मुनि इन आठ मदों के त्यागी होते हैं।
चारित्र'०८ सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसापराय और यथाख्यात यह पा .. का है।५००
सामायिक-भेदरहित सम्पूर्ण पापों को त्याग करने को सामामिक चारित्र कहते हैं।१५०
छेदोपस्थापना-प्रमाद के वश से चारित्र में कोई दोष आ जाने पर प्रायश्चित्त के द्वारा उसको दूर कर पुनः निर्दोष चारित्र स्वीकार करना ।१११
परिहारविशुद्धि-जिस चारित्र में जीवों की हिंसा का त्याग हो जाने से विशेष शुद्धि हो जाती है उसको परिहारविशुद्धि चारित्र कहते हैं । ११२
सूक्ष्मसापराय-अत्यन्त सूक्ष्म लोभ कषाय का उदय होने पर जो चारित्र होता है उसे सूक्ष्म साम्पराय चारित्र कहते हैं ।१५
यथाख्यात-सम्पूर्ण मोहनीय कर्म के क्षय अथवा उपशम से आत्मा के शुद्धस्वरूप में स्थिर होने को यथास्यात चारित्र कहते हैं । १५४
धर्म १५ उपवास, अबमौदर्य (भूख से कम भोजन करना), वृप्तिपरिसंन्यान (मिक्षा को जाते समय गली आदि का नियम लेना) रस परित्याग (दुग्धादि रसों का त्याग), विविक्त शय्यासन (एकान्त स्थान में सोना बैठना), कायक्लेश (शरीर से मोह न रखकर योग आदि धारण करना) में छह बाह्य तप हैं । प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य (शरीर तथा अन्य वस्सुओं से मुनियों की सेवा), स्वाध्याय,
१०७. 'ज्ञानं पूजां कुलं जाति बलमृद्धि तपो वपुः 1 अष्टावाश्रित्यमानिरवं स्मयमाहर्गतस्मयाः' ।।
रनकरण्यश्रावकाचार, २५ । १०८, पत्र. ९।२१९। १०९. 'सामायिकद्रदापस्थापनापरिहारविशुद्धिसूकमसांपराय ययाख्यातमितिचारित्र ।'
तत्त्वार्थ ० ९।१८। ११०. मोक्षशास्त्र, पृ० १८२ (५० पन्नालाल जी)। १११. वही, पृ० १८२ ।
११२. वही, पृ० १८२। ११३. वहीं, पृ० १८२ ।
११४. वही, पृ० १८३ 1 ११५. पप० ९।२१९ ।।
११६. वही, १४।११४, ११५ ।