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राजनैतिक जीवन : २२५
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तात्पर्य क्या है, यह जान लेना आवश्यक है । कौटिल्य अर्थशास्त्र में सन्धि विग्रह, थान, आसन, संश्रय और द्वेषीभाव ये बाड्गुण्य अर्थात् छः गुण कहे गये हैं । किन्तु पद्मचरित में सन्धि ३०७ और विग्रह ३० इन दो गुणों का ख मिलता है । वातव्याधि ऋषि का कहना है कि सन्धि और विग्रह में दो ही मुख्य गुण हैं, क्योंकि इन्हीं दोनों गुणों से अन्यान्य छहों गुण स्वतः उत्पन्न हो जाते है । १०९ आसन और संश्रय का सन्धि में, यान का विग्रह में बोर द्वेषीभाव का सन्धि तथा विग्रह दोनों में अन्तर्भाव होता है ।
सन्धि - दो राजाओं के बीच भूमि, कोश तथा दण्ड आदि प्रदान करने की शर्त पर किए गये पणबन्ध (समझौते ) को सन्धि कहते हैं । १०
विग्रह — शत्रु के प्रति किये गये द्रोह या अपकार को विग्रह कहते हैं । * ११ आसन - सन्धि आदि गुणों की उपेक्षा का नाम आसन है । ११२ यान - शत्रु पर किये गये आक्रमण को यान कहते हैं । संश्रय - किसी बलवान् राजा के पास जाने को एवं अपनी स्त्री तथा पुत्र एवं धन धान्य आदि को समर्पण कर देने का नाम संप्रय है । द्वैधीभाव - सन्धि तथा विग्रह के एक साथ प्रयोग को द्वेषीभाव कहते
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युद्ध की प्रारम्भिक स्थिति-युद्ध प्रारम्भ होने से पूर्व शत्रु राजाओंों के यहाँ दूता भेजा जाता था । दूत स्वाभी का अभिप्राय निवेदन कर लौट आता या । यदि शत्रु राजा वृत द्वारा कही गई बातों की अवहेलना करता था या उनको ठुकराता था तो युद्ध शुरू हो जाता था।' ३११ युद्ध करने से पूर्व बड़ों को सलाह
३०६. 'सन्धिविग्रहासनयानसंश्रयद्वैधीभावाः षाड्गुण्यमित्याचार्याः'
कौटिलीय अर्थशास्त्रम् ७ १ ।
३०८. पद्म० ३७३ ॥
३०७ १० ३७३, ६६।८ | ३०९. 'द्वैगुण्यमिति वातव्याधिः सम्धिविग्रहाभ्यां हि षाड्गुण्यं सम्पद्यत इति ॥ --कौटिलीय अर्थशास्त्रम् ७ । १ ।
३१०. 'तत्र पणबन्धः सन्धिः । कोटिलीय अर्थशास्त्रम् । ३११. 'अपकारो विग्रह' वहीं, ७१ ० ४२५ । ३१२, 'उपेक्षणं मासनं बही, ७११ । ३१३. 'बम्युच्चयो मानं बही, ७।१ । ३१४. 'परापणं संश्रयः, वही, ७१ ।
३१५. 'सन्धिविग्रहोपादानं द्वैधीभावः वही, ७११ ।
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३१६. पद्म० अष्टम पत्र - चषवण और सुमाली का युद्ध ।
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