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________________ राजनैनिक जीवन : २२३ समय भरत पर आक्रमण करने के लिए पुटकीपर राजा के पास सन्देश भेजा । अपमी तैयारी का वर्णन करते हुए वह लिखता है कि इस पृथ्वी पर मेरे जो सामन्त है वे कोष और सेना के साथ मेरे पास है ।२४" इन सब उल्लेखों से सामन्त की महत्ता स्पष्ट होती है। कौटिल्य अर्थशास्त्र में सामन्त शब्द पड़ोसी राज्य के राजा के लिए आया है ।२८ शुक्रनीति के अनुसार जिसकी वार्षिक आय (भूमि से) एक लाख चाँदी के कार्षापण होती थी, वह सामन्त कहलाता था ।२८ वासुदेवशरण अग्रवाल ने सामन्त संस्था का विकास ऐसे मध्यान्य पधियों में तसने का पास किया है जिन्हें छोटे-मोटे रजबाड़ों के समस्त अधिकार सौंपकर शाहानुशाह या महाराजाधिराज मा बड़े सम्राट शासन का प्रबन्ध चलाते थे। युद्ध के प्रसंग में स्थ, हाथी, सिंह, सूकर, कृष्णमृग, सामान्यमृग, सामर, नाना प्रकार के पक्षी, बल, ऊंट, घोडे, भंस आदि वाहनों२८९ पर सवार, सिंह,१५० व्याघ्र,२९१ हाथियों,२१२ आदि से जुते रथों पर सवार तथा घोड़ों के वेग की तरह तीव्र गति वाले २९ सामन्तों का उल्लेख पनचरित में हुमा है। लेखवाह ९४ (पन्नवाहक)-एक स्थान से दूसरे स्थान पर सन्देश भेजने के लिए राजा लोग लेख्वाह (पत्रवाहक) रखा करते थे। इन्हें उस समय की भाषा में लेखहारि२१५ भी कहा जाता था। ये लोग मस्तक पर लेख को पारण करते थे। इस कारण इन्हें मस्तक-लेखक भो कहा गया है ।२९ लेखक-पत्र को लिखने, पढ़ने आदि के लिए लेखक भी नियुक्त किये जाते थे। राजा पृथ्वीधर के यहां सन्धि-विग्रह को अच्छी तरह जानने वाला२९७ (साघुसधिनियहवेधने) एवं सब लिपियों को जानने में निपुण लेखक था ।२५८ युद्ध और उसके कारण-पदमचरित में अनेक युद्धों का वर्णन है । इन युद्धों के मूल कारण चार थे- (१) श्रेष्ठता का प्रदर्शन, (२) कन्या, (३) साम्राज्य विस्तार, (४) स्वाभिमान की रक्षा । २८५. पद्म ३७।१०। २८६. हर्षचरित : एक सांस्कृतिक अध्ययन, प० २१७ । २८७. वही, पृ० २१९ । २८८. वही, पृ० २१७ । २८९. पद्म० ५७।६६ । २९०, पद्म० ५७१४४ । २९१, वहो, ५७५२ ।। २९२. वहीं, ५७।१८। २१३. वही, १०२।१९५ । २९४, बही, ३७।२। २९५. वही, १९६१ । २९६. वही, १९।४। २९७. वही, ३७।३। २९८. वही, ३७४ ।
SR No.090316
Book TitlePadmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Culture
File Size6 MB
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