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________________ २२२ : पद्मचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति पर, सुआ आदि तिर्यकदों पर और यन्त्र से चलने वाली पुरुषाकार पुतलियों पर का क्या क्रोन करना है ?२७७ ऐसे ही एक स्थल पर दूत के प्रति कहा गया है -- ' जिसने अपना शरीर बेच दिया है और शोतं के समान कही बात को दुहराता है, ऐसे इस पापी दोन-हीन भृत्य का अपराध क्या है ?२७८ दूत जो बोलते हैं, विशाल की तरह अपने हृदय में विद्यमान अपने स्वामी से ही प्रेरणा पाकर बोलते हैं । दुत यन्त्रमयो पुरुष के समान पराधीन है। शत्रुपक्ष में इस तरह अपमान का सामना करते हुए भी सन्धिविग्रहादि की भूमिका निर्धारित कराने में दूत का अपना एक विशेष स्थान था, जिसके कारण स्वपक्ष में उसे पर्याप्त सम्मान प्राप्त था । २७९ सामन्त — दौत्य कार्य तथा विभिन्न युद्धों के प्रसंग में सामन्तों का उल्लेख पद्मचरित में आया है। एक बार जब रावण के मन्त्रियों ने रावण से राम के साथ सन्धि करने का आग्रह किया, तब रावण ने वचन दिया कि आप लोग जैसा कहते हैं वैसा ही करूंगा । २८० इसके बाद मन्त्र के जानने वाले मन्त्रियों ने सन्तुष्ट होकर अत्यन्त शोभायमान एवं नीतिनिपुण सामन्तको सन्देश देकर शीघ्र ही द्रुत के रूप में भेजने का निश्चय किया । २०१ उस सामन्त दूत का वर्णन करते हुए कहा गया है कि वह बुद्धि में शुक्राचार्य के समान था, महाओजस्वी था, प्रतापी था, राजा लोग उसकी बात मानते थे तथा यह कर्णप्रिय भाषण करने में निपुण था । वह सामन्त सन्तुष्ट हो स्वामी को प्रणाम कर जाने के लिए उच्चत हुआ । अपनी बुद्धि के बल से वह समस्त लोक को गोष्पद के समान तुच्छ देखता था । २८२ जब यह जाने लगा तब अनेक शस्त्रों से युक्त एक भयंकर सेना जो उसकी बुद्धि से हो मानो निर्मित थी, निर्भय हो गई । दूत की तुरही का शब्द सुनकर वानर-पक्ष के सैनिक क्षुभित हो गए और रावण के आने की शंका करते हुए भयभीत हो आकाश की ओर देखने लगे । २८४ राजा अतिनो ने जिस २७८. पद्म० ८ १८७ । २८०. वही, ६६।११ । २७७. पक्ष्म० ६६।५४ २७९. वही, ८।८८ । २८१, वही, ६६।१२ । २८२. अथ शुक्रसमो बुद्धधा महोजस्कः प्रतापवान् । कृतवाक्यों नृपैर्भूयः श्रुतिपेशलभाषणः । पद्म०६६/१५ । प्रणम्य स्वाभिनं तुष्टः सामन्तो गन्तुमुद्यतः । बृद्धघवष्टम्भतः पश्यन् लोकं गोष्पदसम्मितम् ॥ पद्म० ६६।१६ । २८३. पद्म० ६६।१७ १ २८४. पद्म० ६६।१८ ।
SR No.090316
Book TitlePadmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Culture
File Size6 MB
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