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२०४ : पद्मचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
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नहीं करते हैं। बहुत बड़े कोष का स्वामी होकर जो राजा पृथ्वी की रक्षा करता है और परचक्र (0) के द्वारा अभिभूत होने पर भी विनाश को प्राप्त नहीं होता तथा हिसा धर्म से रहित एवं यज्ञ आदि में दक्षिणा देने वाले लोगों की जो रक्षा करता है उस राजा को भोग पुनः प्राप्त होते हैं । २१ श्रेष्ठ राजा लोकतन्त्र को जानने वाला होता है । राजा अस्त्र, वाहन तथा कवच आदि देकर अन्य राजाओं का सम्मान करता है । ३" राजा सत्य बोलने वाला तथा जीवों का रक्षक होता है। जीवों की रक्षा करने के कारण राजा ऋषि कहलाने योग्य है, क्योंकि जो जीवों की रक्षा करने में तत्पर हूँ मे ही ऋषि कहलाते हैं।
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दुराचारी राजा और उसके दुर्गुण - पद्मचरित में दुराचारी राजाओं का भी उल्लेख हुआ है। उदाहरण के लिए राजा सौदास जो कि नरमांस में अत्यकि आसक्त होने के कारण प्रजा द्वारा नगर से निकाल दिया गया था। * राजा कर्ण को दुराचारी सिद्ध करने के लिए उसे अध्यन्त क्रूर इन्द्रियों का वशगामी, मूर्ख, सदाचार से विमुख, लोभ में आसक्त, सुक्ष्म तत्व के विचार से शूम्य तथा भोगों से उत्पन्न महागर्व से दूषित कहा गया है।'
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राज्य के अंग - कोटिल्य अर्थशास्त्र में स्वामी, अमात्य, जनपद, दुर्ग, कोश, दण्ड (सेना) और मित्र में सात राज्य के अंग कहे गये हैं । *५ पहले राजा के जो गुण कहे गये हैं, उन्हें ही स्वामी के गुण कह सकते हैं ।
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अमात्य[-- अमात्य को पद्मचरित में सचिव तथा मन्त्री" नाम से उल्लिखित किया गया है। यहां इन्हें मन्त्रकोविद" ( मन्त्र करने में निपुण), महाबलवान् ( ( महाबलाः), नीति की यथार्थता को जानने वाले ( तययाथात्म्य
२८. पद्म० ६६ । ९० ।
२९. वही, २७७२४, २५ यक्ष यज्ञ को संरक्षण देने पर विशेष बल देने का कारण यज्ञवाद का प्राबल्य दिखाई पड़ता है। इतना विशेष है कि हिसक यज्ञों के स्थान पर अहिंसक यश को महत्त्व दिया जाने लगा था ।
३०. पद्म०७२।८८ ।
३१. पद्म० ५५८९
३३. वहो, २२०१३१-१४४ । ३५. कौटिल्य अर्थशास्त्र ८|१ |
३२. बहो, १११५८ ।
३४. वही, ३३३८१-८२ ।
३६. ५० ११३।४ ।
३७. वही, ६१२, ७३२२, १६, १५/२६, ८ ४८७, ११।६५ | ३८. वही, ८११६ ।
३९. पद्म० ८।१७ ।
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