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२०२ : पद्मचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
बात का प्रतिपादन किया है कि प्राकृतिक अवस्था में मानव जीवन सामाम्यतया मानन्दपूर्ण था ! पद्मचरित में इसी दूसरी अवस्था को स्वीकार किया गया है ।' प्राकृतिक अवस्था के स्वरूप के सम्बन्ध में मतभेद होते हुए भी यह सभी मानते है कि किसी न किसी कारण मनुष्य प्राकृतिक अवस्था को त्यागने को विवश हुए और उन्होंने समझौते द्वारा राजनैतिक समाज की स्थापना की । पचरित के अनुसार इस अवस्था को त्यागने का कारण समयानुसार साधनों की कमी तथा प्रकृति में परिवर्तन होने से उत्पन्न हुआ भय' था। इन संकटों को दूर करने के लिए समय-समय पर विशेष व्यक्तियों का जन्म हुआ । इन व्यक्तियों को कुलकर' कहा गया। राज्य की उत्पत्ति का मूल इन कुलकरों और इनके कार्यों को ही कहा जा सकता है।
राजा और उसका महत्त्व-राजतन्त्र में राजा ही सर्वोपरि होता है, इस कारण समस्त संसार की मर्यादायें राजा द्वारा ही सुरक्षित मानी गई है। राजा धर्मों की उत्पत्ति का कारण है । राजा के बाहुबल की छाया का आश्रय लेकर प्रजा मुस्ल से मात्मध्यान करती है तथा आयमबासी विद्वान निराकल रहते हैं।' जिस देश का आश्रय पाकर साधुजन तपश्चरण करते हैं उसकी रक्षा के कारण राजा तप का छठा भाग प्राप्त करता है । पृथ्वीतल पर मनुष्यों को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का अधिकार है । वह राजाओं द्वारा सुरक्षित मनुष्यों को ही प्राप्त होता है ।११ राजा के होने पर जितने थावक आदि सस्पुरुष है वे भावपूर्वक पूजा करते हैं। वे अंकुर उत्तन्न होने की शक्ति से रहित पुराने धान्य
३..पा ३।४९.६३ । ४. पुनराज जैन : राजनीति विज्ञान के सिद्धान्त, पृ० १०१ । ५. पप. ३७४ ।
६. पप ३३८५ । ७. वही, ३८८ । ८. भवता परिपाल्यन्ते मर्यादाः सर्वविष्टपे ।
धर्माणां प्रभवस्त्वं हि रत्नानामिव सागरः | पर० ६६.१०। नुपबाहुबलच्छायां समाधिस्य सुखं प्रजाः ।
ध्यायन्त्यात्मानमव्यग्रास्तथैवामिणो बुधाः ।। पम० २७।२७ । १०. यस्य देशं समाश्रित्य साधवः कुर्वते तपः।
षष्ठमंशं नृपस्तस्य लभते परिपालनात् ।। प० २७।२८ । ११. धर्मार्थकाममोक्षाणामधिकारा महीतले ।
जनानां राजगुप्तानां जामन्ते तेझ्यथा कुतः ।। पप० २७।२६ ।