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कला : १९५
उक्ति कौशल के भेद --- उक्ति कौशल के अनेक भेद होते हैं। विशेष रूप से स्थान, स्वर, संस्कार, विभ्यास, काकु, समुदाय, विराम, सामान्याभिहित, समानार्थस्व और भाषा की अपेक्षा उक्तिकोशल के भेद किये गये हैं ।
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स्थान – उरस्थल, कण्ठ और मूर्द्धा के भेद से स्थान सीन प्रकार का होता
है।
स्वर -- पज, ऋषभ, गांधार, गाथा, पन्चम क्षेत्र और निषार थे हाथ स्वर होते हैं ।
४३८
संस्कार -- लक्षण और उद्देश अथवा लक्षणा और अमिषा की अपेक्षा संस्कार दो प्रकार का होता है । ४३९
विन्यास - पद, वाक्य, महावाक्य आदि के विभागसहित जो कथन है वह विन्यास कहलाता है । ४०
काकु - सापेक्षा तथा निरपेक्षा के भेद से काकु दो प्रकार की होती है । ४७१ समुदाय --गद्य, पद्य और मिश्र (चम्पू) के भेद से समुदाय तीन प्रकार का होता है ।
४७२
विराम - किसी विषय का संक्षेप से उल्लेख करना विराम कहलाता है | ४७३
सामान्याभिहित — एकार्थक अथवा पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग करना सामान्याभिहित कहलाता है ।
४७४
समानार्थता - एक शब्द के द्वारा बहुत अर्थ का प्रतिपादन करना समा माता है । ४७५
भाषा - आर्य, लक्षण और म्लेच्छ के भेद से भाषा तीन प्रकार की होती
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है ।"
लेख
-रूप जो व्यवहार होता है उसे लेख कहते हैं । १७७
४६६. पथ० २४। २७-२८ । ४६८. वही, २४८, २४/२९ ।
४७०. वही, २४१३० । ४७२. यही,
२४/३१
४७४. वही, १४।३२ |
४७६. वही, २४१३३ ।
४६७. पद्म २४१२९ । ४६९. वहीं, २४।३० १
४७१, वही, २४/३१
४७३. वही, २४:३२ ।
४७५. वही, २४१३५ । ४७७. वही, २४ ३४ |