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१८८ : पचरिस और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
सटे हुए मन्म भवन भी होते थे जहां अश्वशाला, गजवाला आदि का निर्माण किया जाता था। विनोद के नृत्य, गीन, वादिन भी राजप्रासादों में हुआ करते
प्रपा३१४-(पानीयशाला या प्या) प्राचीनकाल में स्थान-स्थान पर लोगों को पानी पीने के लिए प्याऊ (प्रपाः) बनाई जाती थीं । निजी उद्देश्य की पूर्ति के साथ-साथ इनसे जनकल्याण भी होता था । थे प्याक नगरों११५ उद्यानों३१॥ तथा मन्दिरों के साथ-साथ पों) (मागों) में भी बनाई जाती पी। मार्ग में बनाई गई प्रपाओं के ऊपर वृक्षों की छाया होती यो । इनके पानी को रविषेण ने सब प्रकार के रसों से युक्त (सर्वरसान्विताः) कहा है 1३१८
कूटगृह-भवन-निर्माण के प्रकारों में एक कूटरचना भी है। पद्मचरित में मिनफूट३१९ भानुकूट४०° तथा प्रासादकूट १ का उल्लेख मिलता है। राम, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न का अत्यन्त ऊंचा सब दिशाओं का अवलोकन कराने वाला प्रासादफुट था। ११२ पर्व में पादुकधन के जैन-भवन जन्मदिर) का रणन करते हुए इसकी उपमा भानुकूट से दी गई है तथा मन्दिर को उसमोसम प्राकार, तोरण, ऊँचे-केचे गोपुर, नाना रंग की पताकाओं, स्वर्णमय स्तम्भों एवं गम्भीर तथा सुन्दर छज्जे से युक्त बतलाया है। हा० द्विजेन्द्रनाथ शुक्ल ने हेमकूट को पंधशाल-भवन (द्विशाल + विशाल के संयोजन से) का एक प्रकार माना है । इस माधार पर उपर्युक्त कूटों को भी इसी श्रेणी में रखा जा सकता है ।
समवसरण-तीर्थकर भगवान की यह सभा, जिसमें विराजमान होकर वे धर्मोपदेश देते है, समवसरण कहलाती है। समवसरण में तीन कोट बनाए जाते है।४०३ कोटों की चारों दिशाओं में चार गोपुर होते है जो बहुत ही ऊचे होते है। इन गोपुरों में चार बापियाँ होती हैं । ०४ गोपुर अष्टमंगलव्य से युक्त होते हैं तथा इनको शोभा अद्भुत होती है। १०१ समवसरण में स्फटिक की
३९४. प१० ३८५६३ ।
३९५. पद्म० ३८।६३ । ३९६, वही, ४६।१५२ ।
३९७. वहीं, ६८०११ ३९८. रेणुकण्टकनिर्मुक्ता रथ्यामार्गाः सुखावहाः ।
महात्तस्कृतच्छावाः प्रपाः सर्वरसान्विताः ।। पद्म० ३।३२५ । ३९९. पन. ११२।३२ ।
४००, पद्म ११२४४ । ४०१. वहीं, ८३।६।
४०२. वही, ८३।६। ४०३. वहीं, २।१३५1
४०४. वही, २११३६ । ४०५. वही, २।१३७ ।