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विषय में देश परीक्षा के बनाये जाते थे और पद्मचरित में प्रसंगा
पर्चा को गई है २०७
रविषेण ने उसको
कला १६७ उद्यान --- पुरनिवेश के लिए कृत्रिम तथा कृत्रिम (प्राकृतिक ) दोनों प्रकार के उद्यान होने चाहिए। इनमें से अकृत्रिम उद्यानों के प्रसंग में कहा जा चुका है। कृत्रिम उद्यान प्रत्येक नगर में उनको आकर्षक बनाने का पूरा प्रयत्न किया जाता था। नुसार नगरों में स्थान-स्थान पर उद्यानों के होने की रावण ने जिस देवारण्य उद्यान में सीता को ठहराया था, उपमा स्वर्ग से दी है । २०८ जिस प्रकार स्वर्ग में सभी वस्तु उसी प्रकार इन उद्यानों में भी सभी प्रकार के भोगोपभोग की जाती होंगी। उस उच्चान के वृक्षों का वर्णन करते हुए कहा गया है कि उनके बड़े-बड़े वृक्षों की कान्ति कल्प वृक्ष के समान थी । २०२ वापो २१० सरोवर तथा कूप उद्यान के चिर सहचर होते थे । २११ उद्यानों में मन्दिर बनाये जाते थे तथा मन्दिरों में फूल आदि से सजावट तथा अर्चन आदि किया जाता था। २१२ उद्यानों में वापियों बनाने के अनेक २११ उल्लेख प्राप्त होते हैं। ये चापिकायें स्वच्छ जल से भरी होती थी। इनमें सोदियां भी होता को मल और उत्पल मादि लगाए जाते थे । २१४ सरोवरों में भी सीढ़ियाँ बनाई जाती थीं तथा कमल आदि उगाकर मनोहर बनाने का यत्न किया जाता था । २१५
सुलभ होती हैं, वस्तुएँ जुटाई
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रक्षा-संविधान -- समराङ्गण सूत्रधार के अनुसार नगर के रक्षार्थ प्राकारादि निवेश के १. वन एवं परिक्षा, २. प्राकार ३ द्वार एवं गोपुर, ४ अट्टालिक ५. रया ये पाँच प्रधान अंग है । २१६
वप्र एवं परिखा - नगर की सुरक्षा के लिए उसके चारों मोर परिक्षा या खाई खोदी जाती थी । पद्मचरित में राजगृह नगर का वर्णन करते हुए कहा
२०७. पद्म० ८५०६, ७ प ७८ ।
२०८. उदीचीनं प्रतीचीनं तत्रास्ति परमोज्ज्वलम् ।
गीर्वाणरमण ख्यातमुधानं स्वर्गसन्निभम् || कल्पतरुच्छाय- महापादपसंकुले 1
तत्र
स्थापयित्वा रहः सीतां विवेश स्वनिकेतनम् || पद्म० ४६।२७, २८ ।
२१०. पद्म० ४६।५२ ।
२१२. वहीं, ६८।१६, १७ ।
२०९. पद्म० ४६।२८ |
२११. वही, ४८४८
२१३. वही, ६८ ११, ४६१६०, १४७, १५२, १५८, ९५१९
२१४. वही ५११४ ।
२१५. वही, ६८२ ।
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२१६. द्विजेन्द्र शुक्ल : भारतीय स्थापत्य पू० १०१, १०२ ।