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कला : १६१
शत्रुघ्न ने सुन्दर अवयवों के घारक सप्तषियों को प्रतिमायें विराजमान कराई थीं 1११९ थे सप्तर्षि सुरमन्यु, श्रीमम्य, श्रीनिचय, सर्वसुन्दर, जयवान्, विनय लालस और जयमित्र नाम के सात निर्यन्यमनि थे सो विहार कसे हा मथरा पुरी आए थे । १७०
प्रतिहार-मूर्ति (द्वारपाल-मूर्ति)-रावण के महल में प्रवेश करते समय अजाद के किसी सुभट (मोबा) ने हाथ में स्वर्णमयी वेत्रलता को धारण करने बाला एक (कृत्रिम) प्रतिहार (द्वारपाल) देखा। उससे उसने शान्ति मिनालय का मार्ग पूछा परम्सु वह कृत्रिम द्वारपाल क्या उत्तर देता ? अब कुछ उत्तर नहीं मिला तो 'अरे ! मह अहंकारी तो कुछ भी नहीं कहता' यह कहकर किसी सुभट ने वेग से उसे एक थप्पड़ मार दी, पर इससे उसकी अंगुलियां चूर हो गई । बाद में हाथ के स्पर्श से उन्होंने जाना कि यह सपमुच का द्वारपाल नहीं, अपितु कृत्रिम बारपाल है । इससे स्पष्ट है कि प्रतिहार आदि की भी मूर्तियाँ बनाई जाती थी तथा ये मूर्तियां इतनी सजीच सी होती थी कि कोई भी अपरिचित इनको देखकर भ्रम में पढ़ सकता था।
पशुमूर्तियाँ-पशुओं की भी मूर्तियां बनाई जाती थीं। रावण के आलय में प्रवेश करते समय अंगद के सैनिकों ने ऐसे हाधी देखे जो अंजनगिरि के समान थे, उनके गण्डस्थल अत्यन्त चिकने थे, दात बड़े बड़े और अत्यन्त देदीप्यमान ये तथा इन्द्रनीलमणि से निमित थे । उनके मस्तक पर ऐसे सिहों के बच्चों ने पर जमा रखे थे, जिनकी पूंछ ऊपर को उठी हुई थी, जिनके मुख दाढ़ों से अत्यन्त मयंकर थे, जिनके नेत्र भीषण थे तथा जिनकी मनोहर जटायें थीं । इस
१६९. पप्र० ९२१८२ ।
१७० पप० ९२।१-३ । १७१. दृष्टं कश्चित्प्रतीहारं हेमवेत्रलताकरम् ।
जगाद शान्तिगहस्य पन्थान देशयाश्चिति ।। पद्म० ७१५३५ । कथं न किञ्चिदुरिसस्तो अवीस्येष विसम्भ्रमः । इति घ्नन् पाणिना वेगावापाइगुलिचूर्णनम् ।। पा० ७१।३६ । कनिमोऽयमिति शात्वा हस्तस्पर्शनपूर्वकम् ।
किञ्चित् कक्षान्तरं जग्मुरि विज्ञाय कुछ तः ॥ पय० ७१।३७ । १७२. अनादिप्रतीकाशानिन्द्रनीलमयान् गजान् ।
स्निग्धगण्डस्यलान् स्थूलदन्तानत्यन्तभासुरान् ।। यदम० ७१।१९ । सिंहे बालांश्च तन्मूर्खन्यस्ताङ्क्रीन वालपीन् । दंष्ट्राकरालवदनान् मीषणाक्षान् सुफेसरान् ।। पद्म ७१।२० ।