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११६ : पद्मचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
है। जलक्रीड़ा में स्त्रियाँ और पुरुष समान रूप से भाग लेकर मनोविनोद करते थे । एक बार दशानन जब मेषरव नामक पर्वत पर स्वच्छ जल से मरी वार्षिका पर पहुंचा तब उस क्षपिका पर छह हजार कन्यायें क्रीड़ा में लोन थीं।" उनमें से कुछ कम्यायें दूर तक उड़ने वाले जल के फब्बारे में क्रीड़ा कर रही थीं और कुछ अपराध करने वाली सखियों से दूर हटकर अकेली अकेली ही कम रही थीं । कोई कन्या वाल से सहित कमलों के समूह में बैठकर दांत दिखा रही थी और अपनी सखियों के लिए कमल की आशंका उत्पन्न कर रही थी। कोई कम्या पानी को हथेली पर रख दूसरे हाथ की हथेली से उसे पीट रही थी
और उससे मृदङ्ग जैसा शब्द निकल रहा था। कोई कन्या भ्रमरों के समान जा रही थी । १३ दशानन क्रीड़ा करने की इच्छा से उनके बीच चला गया तथा वे में कन्यायें भी उसके साथ क्रीड़ा करने के लिए बड़े हर्ष से तैयार हो गई । १४
शरीर का लेप घुल जाने के थी। ऐसी कोई स्त्री अपनी
माहिष्मती के राजा सहसरक्ष्मि ने उत्कृष्ट कलाकारों के द्वारा नाना प्रकार के जलयन्त्र बनवाये थे उन सब यन्त्रों का आश्रय कर सहस्ररश्मि ने नर्मदा में उतरकर नाना प्रकार की कोड़ा की । १५ उसके साथ यवनिर्माण को जानने वाले अनेक मनुष्य थे जो समुद्र का भी जल रोकने में समर्थ थे । * यन्त्रों के प्रयोग से नर्मदा का जल क्षण भर में रुक गया था, इसलिए नाना प्रकार की क्रीड़ाओं में निपुण स्त्रियाँ उसके तट पर भ्रमण करने लगीं ।" कारण जो नखक्षसों से चिह्नित स्तन दिखला रही सौत के लिए ईर्ष्या उत्पन्न कर रही को। जिसके समस्त अंग दिख रहे थे ऐसी कोई उत्तम स्त्री लगाती हुई दोनों हाथों से बड़ी आकुलता के साथ पति की मोर पानी उछाल रही थी। कोई स्त्री सौत के नितम्ब स्थल पर नखक्षत देखकर क्रीडाक्रमल की नाल से पति पर प्रहार कर रही थी। कोई एक स्वभाव को कोधिनी स्त्री मौन लेकर निश्चल खड़ी रह गई थी तब पति ने चरणों में प्रणाम कर उसे किसी तरह सन्तुष्ट किया । १८ किसी स्त्री ने सदन के लेप से पानी को सफेद कर दिया था तो किसी ने केशर के द्रव से उसे स्वर्ण के समान पीला बना दिया था ।" उत्तमोत्तम स्त्रियों से घिरे मनोहर रूप के धारक राजा सहस्ररश्मि
११. पद्म० १९० ९५ ।
१३. वही, ८९८ ।
१५. वही, १०/६८ ।
१७. वही, १० ६९ ।
१९. वही, १०१८९ ।
१२. ० ८ ९६, ९७ ॥
१४. वही, ८०१०० ।
१६. वह १० ६८ । १८. वही १०/७१-७४ ।