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मनोरंजन : ११५
था। अनेक प्रकार के पक्षी वहां शरद कर रहे थे, वह सुगन्धित पायु से पूर्ण भा, अनेक प्रकार के पुष्पों और फलों से युक्त था, सब ऋतुओं के साथ वसन्त ऋतु वहाँ उपस्थित थी। उस भूमि पर पांच प्रकार की धूलि से अनेक चित्र बनाये गये थे । अनेक प्रकार के भावों से रमणोम मौलश्री, कमल, जुही, मालती, नागकेशर, सुन्दर पल्लवों से युक्त अशोक वृक्ष तथा इनके अतिरिक्त मुन्दर कान्ति और सुगन्धयुक्त अन्य बहुत से वृक्ष बनाये गये थे। यहां पर बादली रंग के वस्त्र फैलाये गये थे तथा सघन पताकायें फहराई गई थीं। छोटी-छोटी बंटियों से मुक्त सैकड़ों मोतियों की मालायें, चित्र-विचित्र 'अमर, मणिमय फानूस (लम्बूषमणिपद्रिका), पण तथा जिन पर सूर्य की किरणें प्रकाशमान हो रही थों ऐसे अनेक छोटे-छोटे गोले-ये सब ऊँचे-ऊंचे तोरणों तया ध्वजाओं में लगाये गये थे ।' पृथ्वीतल पर जहां-तहाँ कलश रखे गये थे 'ओ कमलिनी-वन में बैठे हुए हंसों के समान सुशोभित हो रहे थे। राम ने जहाँ-जहाँ परण रखे थे वही पृथ्वीतल पर बड़े-बड़े कमल रख दिये गये थे। जहां-तहां मणियों और स्वर्ग से चित्रित तथा अतिशय सुखदायक स्पर्श को धारण करने वाले आसम तथा सोने के स्थान बनाये गये । लदंर से सहित तावाद, मासुगन्धित गन्ध और देवीप्यमान आभूषण वहां जहां-तहाँ रखे गये थे। सब ओर से नाना प्रकार की भोजनसामग्रो से युक्त, जिनमें रसोईघर अलग बनाया गया था ऐसी सैकड़ों भोजनशालायें वहां निर्मित की गई थीं। वहाँ की भूमि कहो गुरु, घी, दही से पकिल होकर सुशोभित हो रही थी तो कहीं कर्त्तव्यपालन करने में तत्पर आदर से युक्त मनुष्यों से सहित पो। कहों मधुर आहार से तृप्त इए पथिक अपनी इच्छा से बैठे थे वो कहीं निश्चितता के साथ गोष्ठी बनाकर एक दूसरे को प्रसन्न कर रहे थे। कहीं सेहरे को धारण करने वाला और मदिरा के नशे में झूमते हुए नेत्रों से युक्त मनुष्य दिखाई देता था तो कहीं मौलश्री की सुगन्धि को धारण करने वाली नशा से भरी स्त्री दष्टिगोचर होती थी। कहीं नाट्य हो रहा था, कहीं संगीत हो रहा था, कहीं पुण्यचर्चा हो रही पी और कहीं बिलासयुक्त स्त्रियाँ पतियों के साथ क्रीड़ा कर रही थीं । कहीं मुस्कुराते हुए लीला से युक्त विद पुरुष जिन्हें धक्का दे रहे थे ऐसी देवनर्तकियों के समान वेवपायें सुशोभित हो रही थी ।१०
जाकीड़ा पप्रचरित में अनेक स्थलों पर जलक्रीड़ा का आकर्षक चित्रण किया गया
१. पन ४०।१४, १४॥१८॥
८. पपः ४०१४-१३ । १०. वही, ४७११९-२३ ।