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९२ : पप्रचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
शर्वरी"६१—परियात्रानामक वन में स्थित एक नदी, जिसके किनारे अनेक शबर रहते थे।
नर्मदा०६२... कर्णरवानदी५६३
कुशाग्रगिरि -(विपुलाचल) मगध देश का राजगृह के समीप का एक पर्वत जहाँ भगवान् महावीर का समवसरण आया था।
बिजया पर्वत५६५-भरत और ऐरावत क्षेत्र में दो रजतमय विजया पर्वत है ।
वंशपर्बत -शस्थल पर्वत । विपुल५५८-विपुलापल।
महामेरु५५५— (सुमेरु पर्वत)-जाम्भूमीप के मध्य में मुमेरु पर्वत है। यह पर्वत कभी नष्ट नहीं होता । इसका मूलभाग वन अर्थात् हीरों का बना है और ऊपर का भाग सुवर्ण तथा मणियों एर्च रत्नों से निर्मित है ।५७० मोधर्म स्वर्ग को भूमि में और इस पर्वत के शिखर में केवल बाल के अप्रभाग बराबर ही असर रह जाता है । यह निन्यानबे हजार योजन ऊपर उठा है और एक हजार योजन नीचे पृथ्वी में प्रविष्ट है ।५७२ यह पर्वत पृथ्वी पर दस हजार योजन और शिखर पर एक हमार योजन घोड़ा है ।२७३ ।
वक्षारगिरि५७४- यहाँ से ऋषभदेव का निर्माण हुआ था। त्रिकूटाचल५७५-राक्षस द्वीप के मध्य में स्थित पर्वत । अष्टापद५७६-कलाश पर्वत ।
सम्मेदशिखर -यहाँ से कासुपूज्य, ऋषभदेव, नेमिनाथ तथा महावीर को छोड़कर शेष २० तीर्थकर निर्वाण को प्राप्त हुए थे।
५६१. पन० ३२।२८ । ५६३. वही, ४०।४० । ५६५. वही, १।५९ । ५६७. वही, १९८४ । ५६९. वही, ३३३३ । ५७१. वहो, ३।३४। ५७३. वही, ३३६ । ५७५. वही, ५।१५५ । ५७७. पही, ५।२४६ ।
५६२. पम. १०।६० । ५६४, वही, १।४६ । ५६६. वही, ३४१ ।। ५६८. वहीं, २११०२ । ५७०. वही, ३।३३। ५७२. नही, ३१३५ । ५७४. वही, ३४२ । ५७६. वही, ५।१९९ ।