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सांव्यवहारिक प्रत्यक्षाभास
म्यायरत्नसार पंचम अध्याय
१ ४६
सूत्र सध्यवहारिक प्रत्यक्षलक्षणरहितं तदूववभासमानं सांव्यवहारिक प्रत्यक्षाभासम् ॥१६॥
व्याख्या - जो ज्ञान वास्तव में सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष तो नहीं है किन्तु उस जैसा ज्ञात होता है वह सांव्यवहारिक प्रत्यक्षाभास है । इन्द्रिय और मन की सहायता से होने वाले एकदेश विशद ज्ञान को सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष कहा गया है । इसके इन्द्रियज सांव्यवहारिकप्रत्यक्ष और अनिन्द्रियज सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष ऐसे दो भेद हैं । चक्षुरादि इन्द्रियों से जो पदार्थ का एकदेश विशद-निर्मल ज्ञान होता है वह इन्द्रियज सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष है । इससे विपरीत इन्द्रियों द्वारा मेघों में जो गन्धर्वनगर का ज्ञान होता है वह इन्द्रियज सांव्यवहारिक प्रत्यक्षाभास है। इसी प्रकार जो मन की सहायता से ज्ञान होता है। जैसे में कि मैं सुखी है, मैं दुखी हूँ इत्यादि वह अनिन्द्रियज सांव्यवहारिक है। इससे विपरीत 'सुख दुःख का ज्ञान और दुःख में सुख का ज्ञान जो होता है वह अनिन्द्रियज सांव्यवहारिक प्रत्यक्षाभास है ॥१६॥
पारमार्थिक प्रत्यक्षाभास
सूत्र-गनः
केवलज्ञानावृते विकले पारमार्थिक प्रत्यक्षाभासम् ||१७|
व्यास्था - अवधिज्ञान, मन:पर्ययज्ञान और केवलज्ञान इन तीन ज्ञानों को पारमार्थिक प्रत्यक्ष माना गया है। उसमें मन:पर्ययज्ञान और केवलज्ञान ये दो ज्ञान पारमार्थिक प्रत्यक्षाभास नहीं होते हैं। मिथ्यात्वयुक्त अवस्था में जीवों के होने वाले ज्ञान ही तदाभास रूप होते हैं। मनः पर्ययज्ञान और केवलज्ञान ये दोनों ज्ञान मिथ्यादृष्टि जीव के नहीं होते हैं। किन्तु सम्यग्दृष्टि जीव के ही होते हैं । इसलिये इन्हें तदाभासरूप नहीं कहा गया है । अवधिज्ञान विकल पारमार्थिक प्रत्यक्ष में परिगणित हुआ है । और जब यह मिथ्यादृष्टि जीव के होता है तब इसका नाम विभंगज्ञान कहा गया है। शिवराजर्षि ने इसी विभंग के प्रभाव से असंख्यात द्वीप समुद्रों से युक्त भी इस मध्यलोक को केवल सात द्वीप समुद्रों से युक्त कहा है । यह विभंगज्ञान का ही प्रभाव है। यह विभंग पारमार्थिक प्रत्यक्षाभास का उदाहरण है 1|१७||
स्मरण भास
सूत्र - अननुभूने वस्तुनितिदितिज्ञानं स्मरणाभासम् ।। १८ ।।
व्याख्या - जिसका पहले इस पर्याय में कभी अनुभवन न हुआ हो उस वस्तु में "वह" ऐसा ज्ञान होना स्मरणाभास है। यह तो निश्चित है कि स्मरणज्ञान अनुभूत वस्तु में ही होता है फिर भी जिस पदार्थ को पहले कभी नहीं देखा है उसे स्मरण का विषय बनाना यही स्मरणाभास है ॥१८॥ प्रत्यभिज्ञानाभास -
सूत्र - समान वस्तुनि तदेवेदमित्यादि ज्ञानं प्रत्यभिज्ञानामासम् ||१६||
व्याख्या - समान आकार वाले पदार्थ में यह वही है ऐसा ज्ञान होना इसका नाम प्रत्यभिज्ञानाभास है । यह पहले प्रत्यभिज्ञान के लक्षण में प्रकट कर दिया गया है कि अनुभवरूप प्रत्यक्ष और स्मृति से जो जोड़रूप ज्ञान उत्पन्न होता है उसका नाम प्रत्यभिज्ञान है । और यह प्रत्यभिज्ञान सादृश्य प्रत्यभिज्ञान, एकत्व प्रत्यभिज्ञान आदि के भेद से अनेक प्रकार का होता है। जहां सादृश्य की प्रतीति में एकत्व की प्रतीति हो वह एकत्व प्रत्यभिज्ञानाभास है। जैसे- देवदत्त और यशदत्त आकार में समान हों तो यहां देववत्त को देखकर ऐसा कहना कि यह वही यज्ञदत्त है । यह एकत्व प्रत्यभिज्ञानाभास का उदाहरण है। जहां एकत्व की प्रतीति में सादृश्य की प्रतीति हो वहां सादृश्य प्रत्यभिज्ञानाभास होता है। जैसे- 'यह यही है' इस प्रतीति के स्थान में 'यह उसके समान है' ऐसी प्रतीति होना इत्यादि ॥ १६ ॥