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न्यायरत्तसार : तृतीय अध्याय अविरुद्ध कारणाम धिमा उदारण :--..
सूत्र---अस्थ प्रशमादयो न सन्ति तत्वार्थबहानाभावादितिप्रतिषेध्याविरुडकारणानुपलब्धेः ।। ५८ ॥
अर्थ-अविरुद्ध कारणानुपलब्धि का उदाहरण इस प्रकार से है, जैसे- इस पुरुष में प्रशम आदि भाव नहीं हैं क्योंकि इस में तत्वार्थश्रद्धानरूप सम्यक्त्व का अभाव है । यहाँ प्रतिषेध्य प्रशमादि भाव हैं । इनका कारण तत्त्वार्थश्रद्धान है । उसका इसमें अभाव है । उससे उसमें प्रशमादि भावों का अभाव अनुमित हो जाता है ॥ ५८ ।। अविरुद्ध पूर्वचरानुलब्धि का उदाहरण :---
सूत्र-मुहूर्तान्ते उत्सर फल्गुनी नोद्गमिष्यति पूर्वफल्गुन्युव याभावाविति प्रतिषेध्या विरुद्ध पूर्वचरानुलन्धेः ।। ५६ ।।
भ्याख्या--अविरुद्ध पूर्वचरानुपलब्धि का उदाहरण इस प्रकार से है, जैसे-एक मुहूर्त के बाद उत्तरफल्गुनी नक्षत्र का उदय नहीं होगा क्योंकि इस समय पूर्वफल्गुनी नक्षत्र का उदय नहीं हुआ है। यहाँ प्रतिषेध्य साध्य उत्तरफानी का उदय है । इसका अविरोधी पूर्वचर पूर्वफल्गुनी का उदय है। पूर्वफल्गुनी के उदय होने के बाद ही एक मुहूर्त में उनरफल्गुनी का उदय होता है। अतः जब पूर्वफल्गुनी रूप अबिरुद्ध पूर्वचर हेतु की अनुपलब्धि है तो इससे यह अनुमित हो जाता है कि एक मुहूर्त के बाद अभी उत्तरफल्गुनी का उदय होने वाला नहीं है ।। ५६ ।। अविरुद्ध उत्तरचरानुपलब्धि का उदाहरण :
सूत्र-तोगान्मुहूतात्पूर्व भरगी कृतिकोद्गमाभावादिति प्रतिषेध्या विरुद्धोत्तरचरानुपलब्धः ॥ ६० ।।
अर्थ-एक मुहर्स के पहिले भरणी नक्षत्र का उदय नहीं हुआ, क्योंकि कृत्तिका नक्षत्र का उदय अभी तक नहीं हो रहा है । यहाँ प्रतिषेध्यसाध्य एक मुहूर्त के पहिले भरणी का उदय होना है। उसके साथ अविरुद्ध उत्तरचर कृत्तिका नक्षत्र है । उसके उदय नहीं होने से भरणी नक्षत्र का उदयाभाव अनुमित हुआ है ।। ६० ।। अविरुद्ध सहचरानुपलब्धि का उदाहरण :
सूत्र--अस्य सम्यग्ज्ञानं नास्ति सम्यग्दर्शनानुपलम्भादिति प्रतिषेध्याविरुद्ध सहनरान - पलब्धेः ।।६।।
अर्थ-अविरुद्ध सहचरानुपलब्धि का उदाहरण इस प्रकार से है, जैसे—इस पुरुष का ज्ञान सम्यग्ज्ञान नहीं है क्योंकि इसमें सम्यग्यर्शन का अभाव है। यहां प्रतिषेध्यसाध्य सम्यग्ज्ञान है और उसका अविरुद्ध महनारी सम्यग्दर्शन है । उसका इसमें सद्भाव नहीं है अतः इसके अभाव में उसमें सम्यग्ज्ञान का अभाव अनुमित हो जाता है ।।६१।। विधिसाधक विरुद्धानुपलब्धि का विचार :
सूत्र-साध्यविरुद्धानुपलब्यिधिसिद्धौ पञ्चविधा-साध्य-विरुद्ध कार्य, कारण, स्वभाव, व्यापफ, सहचरानुपलम्भभवात् ॥ ६२॥