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न्यायरत्नसार : तृतीय अध्याय कि-साध्य से विरुद्ध कार्य की उपलब्धि जहाँ होती है वहाँ वह अभाव की साधक होती है। जैसे- इस प्राणी में क्रोध की शान्ति नहीं है क्योंकि इसमें मुख के विकार मौजूद हैं । यहाँ पर प्रतिषेध्य साध्य क्रोधोपशम है उससे विरुद्ध क्रोधानुपणम है और उसका कार्य बदन विकार है उसकी उपलब्धि इसमें पायी जा रही है। इससे क्रोधोपशमाभाव इसमें अनुमित हो जाता है। इसी प्रकार से “यहाँ ठंड नहीं है क्योंकि धुआ निकल रहा हैं' यह उदाहरण भी इसी के अन्तर्गत जानना चाहिये ।।४६॥ विरुद्ध कारणोपलब्धि का उदाहरण :---
सूत्र--चतुर्थो- अस्य मुने रसत्यवचो नास्ति रागद्वेष कालुष्यादूषित ज्ञानवत्त्वाविति ॥५०॥
स्याख्या-विरुद्धोपलब्धि का चौथा भेद विरुद्ध कारणोपलब्धि है और वह इस प्रकार से है। इस मुनि का वचन असत्य नहीं है क्योंकि इनका ज्ञान राग-द्वेष कालुष्य आदि से रहित है। यहाँ प्रतिषेध्य असत्य है उससे विरुद्ध सत्य है और सत्य के कारणभूत रागद्वषादि रहित ज्ञान का सदभाव है। अतः यह विरुद्ध कारणोपलब्धि का उदाहरण है, इसी प्रकार से "यह आदमी सुखी नहीं है क्योंकि इसके हृदय में शल्य है । यहाँ प्रतिषेध्य सुख है और उससे विरूद्ध दुःख है उसका कारण हृदय शल्य है" यह उदाहरण भी इसी के सम्बस मेंनना चानिदे। 10 विरुद्ध पूर्वतरोपलब्धि का उदाहरण :
सूत्र-पञ्चमो-नोद्गमिष्यति मुहूर्तान्ते शकट रेवत्युद्गमोपलम्भाविति ।।५१।।
व्याख्या-विरुद्धोपलब्धि का पांचवां भेद विरुद्ध पूर्वचरोपलब्धि है। उसका यह उदाहरण है। जैसे-एक मुहर्त के बाद शकट-अश्विनी नक्षत्र का उदय नहीं होगा क्योंकि अभी रेवती का उदय हो रहा है, यहाँ पर प्रतिषेध्य शकटोदय है इसके विरुद्ध अश्विनी का उदय है और इसका पूर्वचर रेवती का उदय है । इससे शकटोदय के अभाव की अनुमिति हो जाती है ।।५१॥ विरुद्ध उत्तरचरोपलब्धि का उदाहरण :
सूत्र--षष्ठी-नोद्गान्मुहूति पूर्व रोहिणी उत्तरफल्गुन्युदयाविति ।।१२।। __व्याख्या---विरुद्धोपलब्धि का छठवां भेद यह विरुद्ध उत्तरचरोपलब्धि है- इसका उदाहरण इस प्रकार से है । जैसे-एक मुहूर्त के पहिले रोहिणी का उदय नहीं हुआ क्योंकि अभी उत्तर-फल्गुनी का उदय हो रहा है । यहाँ प्रतिषेध्य रोहिणी का उदय है, इसके साथ साक्षाद्विरुद्ध पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र है और उसका उत्तरचर उत्तरफाल्गुनी नक्षत्र है। इससे मुहूर्त पूर्व रोहिणी के उदय होने का अभाव अनुमित हो जात
नाता है । रसी प्रकार से "इससे पहिले भरणी का उदय नहीं था क्योंकि इस समय पुष्य का उदय हा रहा है। यहाँ भरणी के उदय का विरोधी पुनर्वसु का उदय है और उसका उत्तरचर पुष्य नक्षत्र का उदय है" यह भी इसके अन्तर्गत जानना चाहिये ॥५२।। सप्तमी विरुद्धसहचरोपलब्धि का उदाहरण :--
सूत्र-सप्तमी–साध्यविरुद्धसहधरोपलब्धियथा-अस्य मुनेमियाज्ञानं नास्ति सम्यग्दर्शनोपलम्भादिति ।। ५३ ।।
व्याख्या-विरुद्धोपलब्धि का सातबा भेद बिरुद्धसहचरोपलब्धि है उसका यह उदाहरण हैजैसे--इस मुनि का ज्ञान मिथ्याज्ञान रूप नहीं है क्योंकि इसमें सम्यग्दर्शन की उपलब्धि है। यहाँ प्रतिषेध्य मिथ्याज्ञान है उससे विरुद्ध सम्यग्ज्ञान है और उसका सहचर सम्यग्दर्शन है। उसकी उपलब्धि से मिध्या