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न्यायरत्नसार : तृतीय अध्याय
| २१ सिद्धि करने में असमर्थ रहता है। इसी प्रकार साध्य का नियत आधार प्रकट करने के लिये पक्ष का प्रयोग प्रश्नाह नहीं है क्यों करना चाहिये इस प्रकार से आक्षेपार्ह नहीं है ॥२२॥ हेतु प्रयोग के भेद :
सूत्र -हेतुप्रयोगोद्विविधस्सथोपपत्तिरूपोऽन्यथाऽनुपपत्तिरूपश्च ॥२३॥
अर्थ-हेतु का प्रयोग तथोपपत्तिरूप और अन्यथानुपात्तिरूप के भेद से दो प्रकार का कहा गया है।
व्यापा.. - साध्य के साः कः विलया है, और उत्ति नाम हेतु का होना है। इस तरह साध्य के सद्भाव में ही हेतु का होना यह तथोपपत्तिरूप हेतु है, जैसे-“पर्वत में अग्नि है क्योंकि उसमें धूम है" । यहां धूमरूप हेतु तथोपपत्ति रूप है, क्योंकि वह माध्य-अग्नि के सद्भाव में ही प्रकट किया गया है । अन्यथा शब्द का अर्थ साध्य का अभाव है और अनुपपत्ति शब्द का अर्थ धूम का-साधन कानहीं होना है। इस तरह माध्य के अभाव में साधन का नहीं होना यह अन्यथानुपपनिरूप हेतु है। इनमें किसी एक के प्रयोग करने में ही साध्य के मद्भात्र का ज्ञान हो जाता है। अतः एक माथ अनुमान में दोनों का प्रयोग करना अनावश्यक है ।।२३।। अनुमानों के अङ्गों का विचार :
सूत्र-१क्ष साधन एवातुमानाङ्ग ।।२४॥ अर्थ-पक्ष-प्रतिज्ञा और हेतु ये दो ही अनुमान के अङ्ग हैं । उदाहरणादिक नहीं।
व्याख्या-सूत्र में अवधारणार्थक जो एव शब्द आया है उससे ये दो ही-पक्ष-और साधन हेतु अनुमान के अङ्ग हैं, उदाहरणादिक नहीं । उदाहरण, उपनय और निगम ये तीन अनुमान के अङ्ग नहीं हैं । पक्ष शब्द से यद्यपि साध्य धर्म का आधारभूत पर्वतादि प्रदेश कहा जाता है परन्तु यहाँ अनुमानाङ्ग के विचार में धर्म–साध्य एवं धर्मी—जिसमें धर्म रहता है-इन दोनों का समुदाय ही पक्ष से गृहीत हुआ है। दूसरे शब्दों में इसे प्रतिज्ञा भी कहा गया है । प्रतिज्ञा शब्द का प्रयोग परार्थानुमान की अपेक्षा से और पक्ष शब्द का प्रयोग स्वार्थानुमान की अपेक्षा से कहा गया जानना चाहिये । यद्यपि कोई-कोई अनुमान केपरार्थानुमान के उदाहरण, उपनय और निगमन ये तीन अङ्ग और भी मानते हैं । इस तरह उनके मत के अनुसार पाँच अङ्ग हो जाते हैं । इन अङ्गों का स्वरूप कथन आगे इसी अध्याय में आने वाला है। परन्तु यहाँ पर जो दो ही अङ्ग अनुमान के प्रकट किये गये हैं, वे व्युत्पन्न श्रोता की अपेक्षा से ही प्रकट किये गये हैं, अल्पबुद्धि श्रोता की अपेक्षा से नहीं, उसकी अपेक्षा तो पांचों का भी प्रयोग किया जा सकता है। उदाहरणादिक समझने के सुभीते के लिये हैं। वास्तव में ये अनुमान के अङ्ग इसलिये नहीं हैं कि ये अनुमान के हिस्से नहीं हैं । अङ्ग का तात्पर्य हिस्सा है। उदाहरणादिक सहायक मात्र हैं। जैसे हाथ पैर आदि शरीर के अङ्ग हैं वैसे पक्ष, हेतु अनुमान के अङ्ग हैं। वस्त्रादि आवश्यक होने पर भी अङ्ग नहीं माने गये हैं। वैसे ही समझने के लिये आवश्यक होने पर भी उदाहरणादिक अङ्ग नहीं कहे गये हैं ॥२४।। शेष अङ्गों के कथन की अपेक्षा
सूत्र-मन्धमतिप्रतिपाद्यापेक्षयोदाहरणादीन्यपि पञ्च यथायथं प्रयोज्यानि ।।२५॥
अर्थ-मन्द मति वाले प्रतिपाद्य-शिष्यजनों की अपेक्षा उदाहरणादिकों का भी यथायोग्य रीति से प्रयोग करना कहा गया है।