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न्यायरल : न्यायरत्नावली टीका : पंचम अध्याय, सूत्र २३
विशेषणो यथा-"न सन्ति सूक्ष्मान्तरित दूरार्था पदार्थाः" अत्र सूक्ष्मान्तरित दूरार्थानां पदार्थानामस्तित्वम् अनुमानतः साधितं वर्ततेऽतः "न सन्ति" साध्येनानेनानुमान निराकृतेन सूक्ष्मान्तरितादिपदार्थ रूपपक्षस्यानुमान निराकृत साध्यधर्म विशेषण पक्षाभासता । आगमनिराकृत साध्यधर्म विशेषणो यथा-जैनेसि भक्ष्यम् प्राप्यङ्गत्वादानादिवत्' इत्यत्र मांसे भक्ष्यत्वमागमान्निराकृतं वर्तते तो भक्ष्यमित्यनेन साध्येनागमनिराकृतेन युक्तत्वात "जैनसिं भक्ष्यम्" एषा प्रतिज्ञाज्यमबाधिता जायते । लोकनिराकृत साध्यधर्म विशेषणो यथा "शंख शुक्तिवदस्थि पवित्रम्" इत्यत्र अस्थि पवित्रता लोक निराकृताऽपवित्रत्वात्तस्य । अतो लोकनिराकृतेन पवित्रत्वसाध्येन युक्तत्वात् अस्थिरूपे पक्षे लोकनिराकृत साध्यधर्म विशेषणत्वमागच्छति एवं कश्चिद्भोजन कुर्वन्मपि पर प्रति एवं प्रतिपादयति यदहं मौनेन भोजनं करोमि, इत्यत्र पक्षाभा पूर्वोक्त पद्धत्या स्वयमेवोह्यम् । एतच्न सर्वमग्रे स्फुटीभविष्यति ।। २३ ॥
अर्थ-पूर्वोक्त रूप से पक्षाभास ३ प्रकार के कहे गये हैं- इनमें द्वितीय जो बाधित साध्यधर्म विशेषणवाला पक्षाभास है, प्रत्यक्षादि प्रमाणों से जिस पक्ष का साध्य बाधित हो जाता है ऐसे उस साध्य से युक्त होने के कारण अनेक प्रकार का कहा गया है । प्रतीत साध्यधर्म विशेषणवाला पक्षाभास और अनभीप्सित साध्य धर्म विशेषण वाला पक्षाभास भेदविहीन कहा गया है क्योंकि इसके भेद नहीं होते हैं । परन्तु जो बाधित साध्य धर्म विशेषण वाला पक्षाभास है वह प्रत्यक्षप्रमाण से, अनुमान प्रमाण से, आगम प्रमाण से, लोक से और स्ववचन से अपने सामको बाधित होने के कारण ककार का कहा गया है। जब कोई ऐसा कहता है कि शब्द पौद्गलिंक नहीं है क्योंकि वह आकाश का गुण है तो ऐसी प्रतिज्ञा में शब्द रूप पक्ष, श्रवण प्रत्यक्ष द्वारा शब्द ग्राह्य होने के कारण अपोद्गलिकत्व साध्य से शून्य सिद्ध होता है। इसलिए यह प्रत्यक्ष से बाधित साध्य वाला होने के कारण पक्षाभास हो जाता है । इसी प्रकार जो पक्ष अनुमान से बाधित साध्यबाला होता है वह अनुमान बाधित साध्य विशेषणवाला पक्षाभास होता है । जैसे कोई ऐसा कहे कि "सूक्ष्म, अन्तरित और दूरार्ध पदार्थ नहीं हैं" तो यहाँ पर साध्य "नहीं हैं" है और सूक्ष्म-परमाणु आदि, अन्तरित-रामरावणादि और दूरार्थ-सुमेरु पर्वत आदि ये सब पक्ष हैं इनमें "नहीं हैं। ऐसा जो साध्य है यह अनुमान प्रमाण से बाधित है क्योंकि अनुमान प्रमाण से इनकी सत्ता सिद्ध हो जाती है । आगम बाधित पक्षाभास वहाँ पर होता है कि जिस पक्ष का साध्य आगम से बाधित होता है जैसे-कोई ऐसा कहे कि मांस भक्ष्य है क्योंकि अन्न की तरह वह प्राणी-अङ्ग है। सो यहाँ पर मांस पक्ष है और भक्ष्य साध्य है । यह साध्य आगम से इसलिए बाधित होता है कि आगम में मांस को अभक्ष्य सिद्ध किया गया है, लोकनिराकृत साध्यधर्म विशेषणवाला पक्षाभास वहाँ होता है कि जहाँ पक्ष का साध्य लौकिक व्यवहार से बाधित होता है जैसे-जब कोई ऐसा कहता है कि शुक्तिका की तरह हड्डी पवित्र है" यहाँ पर हड्डी यह पक्ष है और उस में पवित्रता साध्य है । परन्तु यह पवित्रता उसमें लोकव्यवहार से बाधित है—निराकृत है । स्वत्वचन निराकृत साध्यधर्म विशेषण वाला पक्षाभास वहाँ होता है कि जहाँ पर पक्ष का साध्य स्ववचन से ही बाधित हो जाता है । जैसे-भोजन करता हुआ कोई व्यक्ति ऐसा कहे कि
करता है। जब बह खाता हआ अपने मौनव्रत को दूसरों से कहकर प्रकट कर रहा है तो उसका मौनव्रत कहाँ राधा । अतः ऐसा उसका कथन "मेरी माता बन्ध्या है" इस कथन के अनुसार स्ववचन बाधित हो जाता है ।। २३ ।।
प्राण्यजत्ने समेऽप्यन्न भोज्यं मांस न धार्मिकः । स्त्रीत्वाऽविशेषेऽपि जनायव नाम्बित्रा !!
(सागारधर्मामते)