________________
उपलम्भ क्या है ? धूम और अग्नि को एक साथ देखना उपलम्भ है। अनुपलम्भ क्या है ? अग्नि के अभाव में धूम का अभाव जानना अनुप लम्भ है। तर्क ज्ञान को यदि प्रमाण न माना जाए, तो अनुमान प्रमाण की उत्पत्ति नहीं हो सकती तर्क से धूम और अग्नि का अविनाभाव सम्बन्ध निश्चित हो जाने पर ही धूम से अग्नि का अनुमान किया जा सकता है। अतः अनुमान को प्रमाण मानने वालों को तर्क भी मानना होगा। तर्क के अभाव में अनुमान की उत्पत्ति सम्भव ही नहीं है । नैयाधिक भी अनुमान एवं व्याप्ति ज्ञान में तर्क को सहकारी स्वीकार करते हैं। जैनदर्शन में तर्क को स्वतन्त्र प्रमाण माना गया है।
से,
अनुमान क्या है ? साधन से साध्य का ज्ञान होने से अनुपान का मन है। घनसे, साध्य का, अग्नि का जो ज्ञान होता है, वह अनुमान है | इसको लिंग से लिंग का ज्ञान भी कह सकते हैं। क्योंकि वह साध्य ज्ञान ही अग्नि आदि के अज्ञान को दूर करता है । साधन ज्ञान अनुमान नहीं है, क्योंकि वह तो साधन सम्बन्धी अज्ञान को दूर नहीं कर सकता है | अतः नैयायिकों का यह कथन संगत नहीं है कि लिंग ज्ञान अनुमान है। जैन न्याय में व्याप्तिस्मरण सहित लिंग ज्ञान को अनुमान प्रमाण की उत्पत्ति में कारण मानते हैं । अनुमान दो प्रकार का है— स्वार्थानुमान एवं परार्थानु मान । अनुमान के दो भेद सभी स्वीकार करते हैं । वैदिक बौद्ध और जैन दार्शनिक ।
स्वार्थानुमान क्या है ? स्वयं ही जाने हुए साधन से साध्य के ज्ञान होने को स्वार्थानुमान कहते हैं । स्वार्थानुमान के तीन अग हैं- धर्मी, साध्य और साधन । साधन साध्य का गमक होता है | अतएव वह गमक रूप से अंग है । साध्य साधन के द्वारा गम्य होता है। वह गम्य रूप से अंग है। धर्मी अर्थात् पक्ष साध्य धर्म का आधार होता है । यह साध्यधर्म के व्याधार रूप से अंग होता है । स्वार्था नुमान के दो अंग हैं-- पक्ष और हेतु । यहाँ दोनों
(
जगह विवक्षा का भेद है । केवल कथन की शैली का ही भेद है ।
परार्थानुमान क्या है ? दूसरे के उपदेश की अपेक्षा को लेकर साधन से साध्य का जो ज्ञान होता है, उसे परार्थानुमान कहते हैं। जैसे यह पर्वत अग्नि वाला होने के योग्य है, क्योंकि वह घूम बाला है परार्थानुमान में कारणीभूत वाक्य के दो अवयव हैं • प्रतिज्ञा और हेतु । कहीं उदाहरण भी हैं। वहीं पर उपनय और निगमन भी हो सकते हैं। न्यायशास्त्र में अवयवों की चर्चा बहुत लम्बी है ।
साधन क्या है ? जिसकी साध्य के साथ अन्य - थानुपपत्ति अर्थात् अविनाभाव निश्चित है, उसे साधन कहते हैं। साध्य क्या है ? शक्य, अभिप्रेत और अप्रसिद्ध को साध्य कहते हैं ।
यह अन्यथानुपपत्ति के निश्चय रूप एक लक्षण याला हेतु संक्षेप में दो प्रकार का है विधिरूप और प्रतिषेधरूप । विधिरूप हेतु भी दो हैं- विधि साधक और प्रतिषेध साधक । प्रतिषेध रूप के भी दो भेद हैं-- विधि साधक और प्रतिषेध साधक 1 हेत्वाभास क्या है ? जो हेतु के लक्षण से रहित है, किन्तु हेतु जैसा प्रतीत होता है, उसे हेत्वाभास कहते हैं । वे चार प्रकार हैं- असिद्ध, विरुद्ध, अनैकान्तिक और अकिंचित्कर । न्यायशास्त्र के सभी सम्प्रदायों ने अनुमान को प्रमाण स्वीकार किया है । चावकि अनुमान को प्रमाण नहीं मानता।
चतुर्थ अध्याय
न्यायरत्नसार के चतुर्थ अध्याय में आचार्य ने परोक्ष प्रमाण के पाँच भेदों में से पञ्चम भेद आगम प्रमाण का भेद किया है, उसका लक्षण भी बताया है। दर्शनान्तरों में इसको शब्द प्रमाण कहा गया है । चार्वाक और बौद्ध को छोड़कर सभी ने आगम अथवा शब्द को प्रमाण माना है । बोद्ध अनुमान में ही इसका समावेश कर लेते हैं । चार्वाक सर्वथा इन्कार करता है, वह प्रत्यक्ष के अतिरिक्त अन्य प्रमाण नहीं मानता ।
३४ )