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न्यायरस्त : न्यायरत्नावली टीका तृतीय अध्याय, सूत्र ६२-६३-६४
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सूत्र - साध्यविरुद्वानुपलब्धिविधिसिद्धी पञ्चविधा साध्यविरुद्ध कार्य कारण स्वभाव व्यापक सहचरानुपलम्भभेदात् ॥ ६२ ॥
प्रतिषेधासिद्धीसप्तविधत्वं
संस्कृत टीका-पूर्व प्रतिषेध्या विरुद्धानुपलब्धीनां सविशदं निरूप्याधुना साध्यविरुद्धानुपलब्धीनां पञ्चविधत्वं प्रतिपादयितुमाह-- साध्य विरुद्धानुपलब्धीत्यादि । तथा च साध्येन सहविरुद्धानां कार्य-कारण- स्वभाव व्यापक सहचराणामनुपलन्धि: विधिरूप साध्य सिद्धौ पञ्चविधा भवति । तद्यथा - साध्यविरुद्ध कार्यानुपलब्धिः साध्य विरुद्धकारणानुपलब्धिः साध्यविरुद्ध स्वभावानुपलब्धिः साध्यविरुद्ध व्यापकानुपलब्धिः साध्यविरुद्ध सहचरानुपलब्धिश्वेति । तत्र विधिरूपेण साध्येन सह साक्षाद्विरुद्ध कार्यात्मक हेतोरनुपलब्धिः साध्यविरुद्ध कार्यानुपलब्धिः एवमेव साध्यविरुद्ध कारणानुपलब्ध्यादावपि विज्ञातव्यम् । एता सामुदाहरणानि वक्ष्यन्ते ।
हिन्दी व्याख्या - विधिसाधक विरुद्धानुलब्धि के ५ भेद हैं। जैसे—साध्यविरुद्ध कार्यानुपलब्धि १, साध्यविरुद्ध कारणानुपलब्धि २ साध्यविरुद्ध स्वभावानुपलब्धि ३, साध्य विरुद्ध व्यापकानुपलब्धि ४, और साध्यविरुद्ध सहचरानुपलब्धि ५ । इस अनुपलब्धि में साध्य से विरुद्ध जो कोई भी पदार्थ हो उसके कार्यादिक की अनुपलन्धि विवक्षित हुई है। अतः जहां साध्य से विरुद्ध के कार्यादिक की अनुपलब्धि होती है वहां साध्य के सद्भाव की ही सिद्धि होती है । साध्यविरुद्ध कारणानुपलब्धि में साध्य से विरुद्ध के कारण की अनुपलब्धि विवक्षित हुई है । इसी तरह साध्य विरुद्ध स्वभावानुपलधि में साध्य से विरुद्ध के स्वभाव की अनुपलब्धि, साध्यविरुद्ध व्यापकानुपलब्धि में साध्य से विरुद्ध के व्यापक की अनुपलब्धि और साध्यविरुद्ध सहुचरानुपलब्धि में साध्य से विरुद्ध के सहचर की अनुपलन्धि विवक्षित हुई है । इन अनुपलब्धियों का स्पष्टीकरण आगे के सूत्रों में किया जायेगा ।
सूत्र - साध्यविरुद्ध कार्यानुपलब्धिर्यथा-- अस्मिन् पुरुष रोगातिशयो नीरोगचेष्टानुपलम्भात्
।। ६३ ।।
संस्कृत टीका - साध्यविरुद्ध कार्यानुपलब्धेः स्वरूपं प्रतिपादयितुमाह-- साध्यविरुद्ध कार्यानुपलब्धिरित्यादि । तत्र साध्येन सह साक्षाद्विरुद्धस्य कार्यानुपलब्धिः साध्यविरुद्ध कार्यानुपलब्धिः – यथा अस्मिन् पुरुष रोगातिशयो वर्तते नीरोग चेष्टानुपलम्भात् । अत्र रोगातिशयः साध्यं तेन सह साक्षाद् विरुद्धा नीरोगता | नीरोगतायाः कार्यं वदनप्रसन्नतादि व्यापारविशेषस्तदनुपलम्भाद् रोगातिशयस्य विधिरनुमितो भवति ।
हिन्दी व्याख्या - जैसे -- इस प्राणी में रोगातिशय है । क्योंकि इसमें नीरोग होने की चेष्टा नहीं देखी जाती है - यहाँ पर साध्य रोगातिशय है, और इस साध्य से साक्षाद् विरुद्ध नीरोगता है। इस नीरोगता का कार्य मुख की प्रसन्नता आदि रूप व्यापार विशेष है। इस व्यापार विशेष की अनुपलब्धि से परोक्षभूत भी रोगातिशय का सद्भाव अनुमित हो जाता है ।। ६३ ।।
सूत्र - साध्यविरुद्ध कारणानुपलब्धिर्यथा--अस्मिन् पुरुषे दुःखमस्ति सुखसाधनानुपलब्धेः ॥ ६४ ॥ संस्कृत टीका - साध्यमत्र दुःखम् - तेन सह साक्षाद्विरुद्ध सुखम् तस्य साधनमिष्टसंयोगादि स्वस्यानुपलब्ध्या परोक्षभूतस्यापि दुःखसद्भावस्यानुमिति भवति ।
हिन्दी व्याख्या - इस प्राणी में दुःख है क्योंकि इसके पास सुखसाधन का अभाव है। यहाँ पर विध्यात्मक साध्य दुःख है । इससे साक्षाद्विरुद्ध सुख है। इस सुख का कारण इष्टसयोगादि रूप साधन है ।