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च्यायरत्न ; न्यायरत्नावली टीका; तृतीय अध्याय, सूत्र ३६
हिन्दी व्याख्या अन्य दार्शनिकों ने अनुमान का अङ्ग दृष्टान्त, उपनय एवं निगमन इन सबको माना है। पर जैन दानिकों ने चूंकि वाद-विवाद करने का अधिकार व्युत्पन्नमतिवाले वादी प्रतिवादी को ही होता है, इस कारण प्रतिज्ञा और हेतु ये दो ही अनुमान के-परार्थानुमान के अङ्ग स्वीकार किये हैं। अतः अब इसी बात पर विचार किया जा रहा है कि ये जो अनुमान के अंग माने गये हैं सो क्यों माने गये हैं ? क्या इनमें जो दृष्टान्त हैं वह साध्य की प्रतिपत्ति में कारण पड़ता है इसलिये या बह अविनाभाव की स्मृति में कारण पड़ता है इसलिए या वह अन्यथानुपपत्ति की निर्णीति में कारण पड़ता है इसलिये अनुमान का अंग माना गया है । तो इसी बात पर सूत्र कहा गया है । इनमें--इन विकल्पों में से प्रथम जो विकल्प है उसका विचार कर उत्तर दिया गया है । इसमें यह समझाया गया है कि वह दृष्टान्त साध्य का ज्ञान नहीं करता है । पक्ष में साध्य का ज्ञान तो उसके साथ अविनाभाव सम्बन्ध वाले हेत के प्रयोग से ही हो जाता है। जब ऐसा कहा जाता है कि "यह पर्वत अग्निवाला है क्योंकि इसमें धूम है" इस प्रकार के साध्यात्रिनाभाषी साधन के कहने पर ही अविस्मृत साध्य माधन प्रतिबन्ध वाले श्रोता को साध्य का ज्ञान हो जाता है तो फिर उमका ज्ञान कराने के लिए "यथा महानसम्" ऐसे दृष्टान्त का कथन अनावश्यक ही है ॥ ३५ ॥
सूत्र-नापि तदबिनाभाव स्मृतयेऽन्यथानुपपत्तिबलादेव तसिद्धः ।। ३६ ।।
संस्कृत टीका-"पर्व इलिमान धूगात महाला त्या पयो महानसं दृष्टान्तोऽस्मादेव कारणात् न्यस्तोभवति यत्तत् साध्य साधनयोरविनाभाव स्मृति कारयति अतः प्रमाता महानसे गृहीतम् अनयोरविनाभाव तत्प्रभावतः संस्मृत्य पक्षऽपि पर्वभूते धूमदर्शनतो निःशङ्कमग्निमनुमिनोति । इत्यपि प्रतिपादनं परेषां न परम अन्यथानपपत्ति रूप हेतु प्रयोगादेव तयोरविनाभाव सम्बन्ध स्मृतेः । व्युत्पन्न धोतजनस्तावत् पूर्वत एव विपक्ष बाधकबलादेव तयोरविनाभा गृहीत्वा पश्चात् अन्यथानुपपत्ति रूप हेतु दर्शनेनैव तयोरविनाभाव स्मरति । न च दृष्टान्त बलादन्यथाऽन्तव्यप्तेिरभाष प्रसङ्गात् ॥ ३६ ।।
सूत्रार्थ बह दृष्टान्त अविनाभाव सम्बन्ध की स्मृति करा देता है अतः वह अनुमान का अंग माना गया है सो यह कथन भी ठीक नहीं है, कारण कि अन्यथानुपपत्ति रूप जो हेतु का लक्षण है उसके बल से ही साध्य और साधन के अविनाभाव की स्मृति प्रमाता को हो जाती है।
हिन्दी व्याख्या–पर्वतोऽयं वन्हिमान् धूमाद् महान सवत्'' महानस की तरह यह पर्वत अग्निवाला है क्योंकि वह धूमवाला है । इस अनुमान प्रयोग में महानस दृष्टान्त इसी कारण से दिया गया है कि वह साध्य और साधन के अविनाभाव सम्बन्ध की याद दिला देता है और इसी से प्रमाता धूम को देख कर बह्नि का अनुमान कर लेता है, क्योंकि उसने साध्य और साधन का साहचर्य सम्बन्ध पहले महानस में कई बार देखा है। अतः धूम को ज्यों ही वह देखता है तो वह कहता है कि पहले देखे गये महानस की तरह यह पर्वत अग्निवाला है; क्योंकि यहां पर भी धूम है। धूम अग्नि के बिना होता नहीं है। इस तरह दृष्टान्त साध्य साधन के अविनाभाव की स्मृति कराने वाला होता है। अतः उसे अनुमान का अंग माना गया है। क्योंकि वह अनुमाता इसी के बल पर अविनाभाव सम्बन्ध का स्मरण करके धूम से बह्नि की वही अनुमिति करता है । सो इस प्रकार का प्रतिपादन करके दृष्टान्त अनुमान का अंग नहीं बन सकता है। कारण कि साध्य माधन के अविनाभाव सम्बन्ध की स्मृति अन्यथानुपपत्ति के बल से ही हो जाती है। जब प्रमाता यह जानता है कि धूम बिना साध्य-अग्नि के नहीं हो सकता है तो वह धूम को