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प्रथम अध्याय
।। मंगलाचरण ॥
वर्तमान जिनं नत्वा गौतम गणनायकम् ।
बालानां तत्त्वबोधाय न्यायरत्नं विरच्यते ।।१।। संस्कृत टोका-निखिल तार्किक शिरोमणि परम कारुणिक गुरुप्रसादप्राप्त न्यायतस्वविवेकः मुनिश्री घासीलालः स्वोपज्ञप्रारिप्सित न्यायरत्ननामक ग्रन्थस्य प्रत्यूह व्यूहविध्वंसपूर्वक समाप्त्यर्थ महावीरदेवादेर्नमस्कारात्मक मङ्गलं शिष्यपरम्पराणां शिक्षार्थ ग्रन्थादौ निबध्नाति--"
वमानं जिनं. नत्वा गौतममित्यादि" बर्द्धमान महावीरम्, जिनं-जयतीति जिनः-रागद्वेषादिरूपान्तः शत्रुजयनशीलः, तं जिन-जिनेन्द्र तीर्थकरं नत्वा-नमस्कत्य. एवं गणनायक-गणस्य-चविधमनिसंघस्य नायक -नेतारं गौतमाभिध गणधरं मनि च नत्वा. बालानाम-अधीत काव्यकोशादि ग्रन्थानाम् अनधीत न्यायशास्त्राणां लधोयसां विनेयानां न्यायपदार्थज्ञानलाभाय न्यायरत्नम्-न्यायशास्त्र प्रतिपाद्य प्रमाण प्रमेयादि पदार्थ स्वरूपप्रकाशक न्यायरत्ननामक न्यायशास्त्रं विरच्यते-मया घासिलालेन निर्मीयते मुनिनेतिशेषः, न्यायपदार्थस्वरूप प्रकाशकत्वादेवात्र रत्नत्वमभिहितं बोध्यम् ।
अवय-वर्द्धमानं जिनं गणनायकं गौतमं नत्वा बालानां तत्त्वबोधाय न्याय रत्नं विरच्यते ।
अर्थ:-श्रीवर्द्धमान जिनेन्द्र को एवं गणधरों के नायक मुख्य गणधर गौतमस्दामी को, मनवचन एवं काय की एकाग्रतापूर्वक नमस्कार करके न्यायशास्त्र से अनभिज्ञ शिष्य जनों को न्यायशास्त्र प्रतिपादित प्रमाण-प्रमेय आदि पदार्थों के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान कराने के लिये मुझ मुनि घासीलाल के द्वारा यह न्यायरत्न नाम का ग्रन्थ रचा जाता है।
हिन्दी व्याख्याः-ग्रन्थकार मुनिराज श्री घासीलालजी ने इस नवीन न्यायरत्न ग्रन्थ के बनाने का क्या प्रयोजन है ? यह अपना विशुद्ध अभिप्राय इस श्लोक के द्वारा प्रकट किया है। इसमें सर्वप्रथम उन्होंने यह कहा है मैंने जो यह नवीन ग्रन्थ बनाया है वह मेरी सर्व स्वाधीन कृति नहीं है क्योंकि मैंने अपने तार्किक शिरोमणि परम दयालु गुरुदेव के मुखारविन्द से तर्कशास्त्र का जो बोध प्राप्त किया है वही उनकी परम असाधारण भक्ति के अनुग्रह से इस रूप में परिणमित हुआ है। यही बात "निखिल ताकिक शिरोमणि" आदि पद द्वारा उन्होंने व्यक्त की है । अतः यह सर्वश्रेय गुरुदेव का ही है।
आस्तिक जनों की ऐसी ही परम्परा चली आ रही है कि वे जब कभी भी नवोन अन्य का निर्माण करते हैं तो सबसे पहले वे अपने इष्ट देवता को वाचनिक नमस्कार करते हैं । इस वाचनिक नमस्कार करने का नाम ही मङ्गलाचरण है "म-भवसम्बग्धिन बंधनं, तमिबन्धनं कुरबा गालपति = मासयतीति,
(१) न्या टी०१