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प्रस्तावना
२. माणिकनार—ये प्रभाकरमतानुयायी मीमांसक दार्शनिक विज्ञान में एक प्रसिद्ध विद्वान् हो गये हैं। इन्होंने प्रभाकर गुरुके सिद्धान्तोंका बसे जोरोंके साथ प्रचार और प्रसार किया है । उन (प्रभाकर के वृहती नामके टोका-ग्रन्थपर, जो प्रसिद्ध मीमांसक शवरस्वामीके शाररमाष्पकी व्याख्या है, इन्होंने 'ऋविमला' नामकी पंजिका सिखी है। प्रमाकरके सिद्धान्तोंका विवरण करनेवाला इनका 'प्रकरणपंजिका नामका वृहद् ग्रन्थ भी है। ये ईसाकी आठवीं शताब्दीके विद्वान् माने जाते हैं। न्यायदीपिकाकारने पृ० १९ पर इनके नामके साय 'प्रकरणपंजिका' के कुछ वाक्य उद्धृत किये हैं।
३. उदयन-ये न्यायदर्शनके प्रतिष्ठित प्राचार्यों में हैं। नायिक परम्परामें ये 'प्राचार्य के नामसे विशेष उल्लिखित हैं । जो स्थान बौद्धदर्शनमें धर्मकोत्ति और जनदर्शनमें विद्यानन्दस्वामीको प्राप्त है वही स्थान न्यायदर्धनमें उदयनाचार्यका है । ये शास्त्रार्थी और प्रतिभाशाली विद्वान थे । न्यायकुमुमांजली, प्रात्मतत्वविवेक, लक्षणावली, प्रशस्तपादभाष्यको टीका किरपावली और वाचस्पति मिश्रको न्यायवात्तिकतात्पर्यटीकापर लिखी गई तात्पर्यपरिशुद्धि टीका, न्यायपरिशिष्ट नामकी न्यायमूत्रवृत्ति
आदि इनके बनाये हुए ग्रन्थ हैं। इन्होंने अपनी लक्षणावनी' शक सम्बत् ६०६ (६८४ ई०) में समाप्त की है। अतः इनका अस्तित्वकाल दशवीं शताब्दी है। न्यायदीपिका (पृ. २१) में इनके नामोल्लेखके साथ 'न्मायकुसुभांजलि' (४-६) के 'तन्मे प्रमाणं शिवः' वाक्यको उद्धृत किया गया है। और उदयनाचार्यको 'योगाग्रसर लिखा है । अभिनव धर्मभूषण इनके न्यामकुसुमांजलि, किरणावली प्रादि ग्रन्थोंके अच्छे अध्येता थे। न्यायदी० पृ० ११० पर किरणावली (पृ० २६७, ३००,३०१) गत
१ "तर्काम्बरारूप्रमितेष्वतीतेषु शकान्ततः । वर्षेष्वदयनश्चक्रे सुबोधां लक्षणावलीम् ।।"-सकाना० पृ० १३