________________
प्रस्तावना
भी कह देना प्रावश्यक है कि समन्तभद्रस्वामीने', जो उमास्वातिके उत्तरवर्ती और पूज्यपादके पूर्ववर्ती हैं, प्रमाणके अन्य प्रकारसे भी दो भेद किये हैं-१ अक्रमभावि और २ कमभावि । केवलज्ञान प्रक्रममावि है
और शेष मस्यादि चार जान क्रममावि हैं। पर यह प्रमाणयका विभाग उपयोगके क्रमाक्रमकी अपेक्षाले है। समन्तभद्र के लिये भाप्तमीमांसा प्राप्त विवेचनीय विषय है। अतः प्राप्तके ज्ञानको उन्होंने मक्रममावि और प्राप्त भिन्न अनाप्त (छयस्थ) जीवोंके प्रमाणज्ञानको क्रमभावि बतलाया है इसलिये उपयोगभेद या व्यक्तिभेदकी दृष्टिसे किया गया यह प्रमाणद्वयका विभाग है। प्रा धर्मभूषणने सूत्रकार उमास्वाति निर्दिष्ट प्रत्यक्ष और परोक्षरूप ही प्रमाणके दो भेद प्रदर्शित किये हैं भौर उनके उसरभेदोंकी पूर्व परम्परानुसार परिगणना की है। जनदर्शन में प्रमाणके जो भेद-प्रभेद किये गये हैं वे इस प्रकार हैं:
१ "तत्त्वज्ञान प्रमाणं ते युगपत सर्वभासनम् । मभावि च यज्ज्ञानं स्याद्वादनयसंस्कृतम् ॥"
___ .-माप्तमौ का १०१।
२ "स्पर्शनादीन्द्रियनिमित्तस्य बहुबहुविक्षिप्रानिसृतानुक्तप्रवेषु तदितरेष्वर्थेषु वर्तमानस्य प्रतीन्द्रियमष्टचत्वारिंशभेदस्य व्यञ्जनावग्रहभेदरष्टः चत्वारिशता सहितस्य संख्याष्टाशीत्युत्तरदिशती प्रतिपातम्या । तथा पतिन्द्रियप्रत्यक्षं बह्वादिद्वादशप्रकारार्थविषयमवग्रहादिविकल्पमष्टचस्वारिशसंख्यं प्रतिपत्तव्यम् ।"-प्रमाणप० पृ०६५।