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तीसरा प्रकाशा
२०१ सार ही पाचलप्य हेतुका लक्षम प्रयाप्त है। पर अन्यधानपत्ति सभी ( केवलान्वयी मादि ) हेतुषों में व्याप्त है— रहती है। इसलिये उसे ही हेतुका लक्षण माममा ठीक है। कारण उसके बिना हंस अपने साभ्यका गमक (जापक ) नहीं हो सकता है।
जो यह कहा गया था कि प्रसिद्ध माविक पच हेत्वाभासोंके 5 निवारण करने के लिये पांच रूप हैं, वह ठीक नहीं है। क्योंकि प्रन्यषा. नुपपत्ति विशिष्टरूपसे निश्चलपना हो, जो हमने हेतुलक्षम माना है, उन असिवादिक हत्वाभासोंका निराकरण करनेवाला सिड होता है । तात्पर्य यह कि केवल एक अन्यथानुपपत्तिको ही हेतु का सक्षम मानने से मसिदाविक सभी बोषों का वारण हो जाता है । 10 वह इस प्रकार से है :____ो साध्य का प्रविनाभावो है--साध्य के होने पर ही होता है पौर साध्य के बिना नहीं होता तथा निश्चमपप को प्राप्त है मीत मिसका ज्ञान हो चुका है वह हेतु है, क्योंकि "जिसका सायके साथ भविनाभाव निश्चित है वह हेतु है" ऐसा पक्ष्म 15 है और यह अविनाभाव प्रसिद्ध नहीं है। दको अनित्यता सिक करने के लिये जो 'सनु इन्द्रियका विषय' हेतु बोला जाता है बह पाद का स्वरूप हो नहीं है । अर्थात् शब्दमें बक्षु इगिय की विषपता ही नहीं है तब उसमें अन्यथानुपपत्तिविशिष्टरूपसे निश्चयपवाप्ति प्रति-अविनामावका निश्चय कैसे हो सकता है ? 20 प्रांत-गहीं हो सख्ता है। प्रतः साम्य के साब मणिनाभाव का निवप न होने से ही 'बलु इनिम का विषय' हेतु प्रसिद्ध हेत्वाभास है, न कि पामर्मता के प्रभाव होने से। कारण, पाषर्मता के बिमा भी कृतिकोवयादि हेतुओं को उक्त पन्यमानुपपत्तिल्म हेतुलाण के एने से ही ससु-सम्पद हेतु कहा गया है। और 25